महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला एक बार कानपुर के एक प्रतिभा सम्मान समारोह में अतिथि थे। एक गरीब बालिका को राज्य सरकार की प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिली। यह उसका समर्पण और मेहनत का फल था। मगर मंच पर तारीफ करते हुए किसी ने बालिका को संकेत करके कहा कि इस जैसी मेहनती लड़की शहर का गौरव है, परिवार का गौरव है। यह निर्धन है और इसके पिता दिन-रात रिक्शा चलाते हैं। रिक्शा वाले की बेटी इतना ऊंचा पद पा कर सबके लिए एक मिसाल बनी। यह सुनकर महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से रुका नहीं गया। वह मंच पर आ गये। और वक्ता को विनम्रतापूर्वक कहा कि महोदय संसार में कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। पिता रिक्शा चलाते हैं, कहकर बेटी के अनुशासित और मेहनती तथा उसके प्रेरणा-स्रोत पिता का इस तरह अपमान न करें। यह सचमुच ही एक गहरी बात थी। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे