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स्वास्थ्य-सौभाग्य के लिए सूर्य आराधना

भानु सप्तमी व्रत 20 अप्रैल
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सूर्यदेव केवल प्रकाश के नहीं, जीवन, आरोग्य और चेतना के भी परम स्रोत हैं। भानु सप्तमी पर अर्पित अर्घ्य, उपवास और मंत्रजप से जहां श्रद्धा प्रकट होती है, वहीं यह वैज्ञानिक रूप से भी स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। शास्त्रों में यह व्रत पापों के नाश व सौभाग्य की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाला बताया गया है।

चेतनादित्य आलोक

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इस बात की पुष्टि विज्ञान भी करता है कि पृथ्वी पर जीवन सूर्यदेव के कारण ही संभव हो पाया है। यदि भगवान श्रीसूर्य नारायण की किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाएं तो पशु, पक्षी, वनस्पति, कीड़े-मकोड़े, मनुष्य आदि सभी के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा। इसी प्रकार, सनातन धर्म में भी जीवन, स्वास्थ्य, पोषण, स्फूर्ति, सुरक्षा एवं सुख-समृद्धि प्रदाता भगवान श्रीसूर्य नारायण को ऊर्जा, शक्ति और प्रकाश का परम एवं प्रमुख स्रोत माना जाता है। हिंदू शास्त्रों में सूर्यदेव को ब्रह्माण्ड के सभी (9) ग्रहों का राजा बताया गया है। विज्ञान के अनुसार भी देखा जाए तो सौर मंडल का सबसे महत्वपूर्ण ग्रह सूर्य को ही माना जाता है। प्रायः इसीलिए सनातन धर्म में भगवान सूर्य को समर्पित अनेक व्रत, पर्व एवं त्योहार मौजूद हैं। भगवान सूर्य को समर्पित ऐसा ही एक पावन व्रत ‘भानु सप्तमी’ है।

गौरतलब है कि ‘भानु’ भगवान सूर्य का ही एक नाम है। सनातन धर्म में भानु सप्तमी के दिन भगवान श्री सूर्यनारायण का महाभिषेक तथा उनकी पूजा-आराधना करना अत्यंत शुभ माना जाता है। शास्त्रों में वर्णन है कि इस व्रत को करने वाले भक्त भगवान श्रीसूर्य नारायण की भक्ति और आराधना कर अपने तथा अपने परिवार वालों के लिए अच्छे स्वास्थ्य, सौभाग्य, सुख और समृद्धि की कामना करते हैं।

व्रत तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार जब भी सप्तमी तिथि रविवार को पड़ती है, तो उसे भानु सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखकर श्रीसूर्य नारायण भगवान की पूजा-आराधना करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन व्रत और पूजा करके परिवार के लिए स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि की कामना की जाती है। इस बार, सप्तमी तिथि 19 अप्रैल को शाम 06 बजकर 21 मिनट पर आरंभ हो रही है, जबकि इसका समापन 20 अप्रैल की शाम 07 बजे होगा। बता दें कि सनातन धर्म में उदया तिथि का मान होने के कारण भानु सप्तमी का व्रत 20 अप्रैल यानी रविवार को किया जाएगा।

सप्तमी व्रत का महत्व

पुराणों में वर्णन मिलता है कि जब भगवान श्रीसूर्य नारायण सात घोड़े के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए और धरती से अंधकार को दूर करने के लिए अपनी किरणें फैलाईं, तो उस दिन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि थी। इस प्रकार, सूर्यदेव के प्राकट्य के उपलक्ष्य में ही ‘भानु सप्तमी’ व्रत किया जाता है। भानु सप्तमी के दिन भक्त स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होने के बाद भगवान सूर्य को जल से अर्घ्य देने के बाद स्थल परिक्रमा करते है। इसके अतिरिक्त, भक्त इस दिन उपवास भी करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भक्त हमेशा के लिए यानी अखंड स्वस्थ जीवन चाहते हैं, वे भगवान श्रीसूर्य नारायण की प्रसन्नता हेतु ‘आदित्य हृदयम‍्’ एवं भगवान सूर्य के अन्य स्तोत्रों का पाठ करते हैं। वहीं, महिलाएं ज्ञान प्राप्ति और सद्गुणों की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। इस व्रत को लेकर एक विशेष मान्यता यह है कि जो भक्त सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करते हैं, वे गंगा नदी में स्नान करने के बाद की पवित्रता प्राप्त करते हैं और उनकी निर्धनता समाप्त हो जाती है। इस व्रत को करने वाले भक्त यदि भगवान भास्कर की सच्चे मन से पूजा-आराधना करते हैं, तो उन्हें समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

उत्सव और अनुष्ठान

भानु सप्तमी व्रत को देश भर में उत्सव की तरह मनाए जाने की परंपरा रही है। इस व्रत का अनुष्ठान बड़े ही धूमधाम से किया जाता है। प्रायः महिलाएं भगवान सूर्य की किरणों का स्वागत करने के लिए अपने घरों के मुख्य द्वार के सामने रंग-बिरंगी और मनोहर रंगोलियों का निर्माण करती हैं। इन रंगोलियों के मध्य में गाय के गोबर से बने कंडे जलाए जाते हैं। इन कंडों की अग्नि पर ही एक मिट्टी के पात्र में दूध को उबाला जाता है। इस दौरान इस बात का ध्यान रखा जाता है कि दूध का पात्र सूर्याभिमुख रहे। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से जब दूध उबलता है, तो यह आकाश में भगवान श्रीसूर्य नारायण तक पहुंचता है। तत्पश्चात भगवान भास्कर को खीर का प्रसाद अर्पित किया जाता है। इस अवसर पर ब्राह्मणों को अन्न का दान करना बहुत शुभ फलदायी माना जाता है। वैसे, भानु सप्तमी को अर्क सप्तमी, अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, सूर्य सप्तमी, विवस्वत सप्तमी, व्यवहारस्वथम सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है।

क्या करें

भानु सप्तमी व्रत को करने वाले भक्तों को भगवान श्रीसूर्य नारायण को जल में लाल रंग के फूल, काले तिल, गुड़ और चावल मिला कर अर्घ्य देना चाहिए। तत्पश्चात गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जब भगवान भास्कर को अर्घ्य दें तो पूर्वाभिमुख खड़े रहें और देखें कि गिरते हुए जल से होकर सूर्यदेव का प्रकाश अर्घ्य देने वाले व्यक्ति के शरीर पर पड़ रहा हो। एक और महत्वपूर्ण बात यह कि प्रातः श्रीसूर्य देव को अर्घ्य देते समय भक्तों को लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए।

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