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निरंतर प्रयास से सफलता

एकदा

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रोजलिंड फ्रैंकलिन कैम्ब्रिज में काम करते हुए डीएनए की संरचना पर शोध कर रही थीं। उस समय उनके सामने कई कठिनाइयां थीं—एक, प्रयोग के लिए आवश्यक एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी उपकरण अत्यंत जटिल और संवेदनशील थे; दो, उनके सहकर्मियों का सहयोग सीमित और प्रतिस्पर्धात्मक था। एक दिन उन्होंने अपने प्रयोगों में एक नई तकनीक आजमाई। कई बार उन्होंने प्रयोग विफल होते देखा और कैमरे में ली गई एक्स-रे तस्वीरें धुंधली या अधूरी निकलती थीं। उनके सहयोगी सुझाव देने लगे कि यह तरीका मुश्किल है और समय की बर्बादी है। फ्रैंकलिन ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा, ‘यदि मैं लगातार प्रयास नहीं करूंगी, तो यह ज्ञान कभी भी सामने नहीं आएगा।’ उन्होंने रातों-रात प्रयोग दोहराए, कैमरे की स्थिति बदली, रसायनों और तापमान का ध्यान रखा। अंततः उन्होंने ‘फोटो 51’ लिया, जो डीएनए की हेलिकल संरचना को स्पष्ट रूप से दिखाता था। यह तस्वीर जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक को डीएनए का मॉडल बनाने में मददगार साबित हुई।

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