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उपवास से आध्यात्मिक उन्नति

निर्जला एकादशी 6 जून
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राजेंद्र कुमार शर्मा

भारतीय संस्कृति में एकादशी व्रतों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें निर्जला एकादशी को सबसे कठिन, पुण्यदायी और विशेष माना जाता है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है और इसका व्रत करने से सभी एकादशियों का फल एक साथ प्राप्त होता है। इसे भीम एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

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निर्जला एकादशी की तिथि

हिंदू पंचांग और ज्योतिषाचार्यों के अनुसार निर्जला एकादशी शुक्रवार, जून 6 को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि का प्रारम्भ 6 जून को प्रातः 02:15 बजे तथा समापन 7 जून को प्रातः 04:45 बजे होगा। एकादशी व्रत के उद्यापन का समय 7 जून, 2025 को अपराह्न 01:45 बजे से सायं 04:30 बजे तक रहेगा। जबकि वैष्णव निर्जला एकादशी शनिवार, जून 7 को होगी तथा इस एकादशी व्रत का पारण 8 जून को प्रातः 05:25 बजे से 07:15 बजे मध्य किया जा सकता है।

पौराणिक कथा

निर्जला एकादशी का विशेष महत्व श्रीमद्भागवत, पद्म पुराण और स्कंद पुराण जैसे ग्रंथों में वर्णित है। कहते हैं कि महाभारत काल में भीमसेन, जिन्हें भोजन प्रिय था, नियमित एकादशी उपवास नहीं कर पाते थे। उन्होंने ऋषि व्यास से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे सभी एकादशियों का फल एक साथ मिल जाए। तब व्यास जी ने उन्हें ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत निर्जल (बिना जल के) करके रखने का परामर्श दिया। इस दिन भीम ने बिना जल ग्रहण किए पूरे दिन व्रत रखा, जिससे उन्हें सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य प्राप्त हुआ।

व्रत की विधि

निर्जला एकादशी व्रत में जल तक का सेवन वर्जित होता है। व्रती एक दिन पहले अर्थात‍् दशमी की रात्रि को सात्विक भोजन करके रात्रि जागरण करता है। एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पूजन में तुलसीदल, पंचामृत, पीला वस्त्र, फल और गंगाजल का प्रयोग किया जाता है। शाम को आरती के बाद कथा श्रवण और विष्णुसहस्रनाम का पाठ किया जाता है। द्वादशी के दिन दान-पुण्य कर व्रत का पारण किया जाता है, जिसमें अन्न-जल का सेवन कर व्रत समाप्त किया जाता है।

आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

निर्जला एकादशी का व्रत केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आत्मनियंत्रण और संयम की एक गहन साधना भी है। उपवास से शरीर को विश्राम मिलता है और पाचन तंत्र को सुधारने का अवसर मिलता है। जल का त्याग शरीर में सहनशक्ति को बढ़ाता है और मानसिक एकाग्रता को प्रबल करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह व्रत आत्मशुद्धि, पापों के प्रायश्चित और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। इस दिन ब्रह्मचर्य, सत्य, दया और क्षमा का पालन करते हुए स्वयं को परमात्मा के निकट अनुभव किया जा सकता है। पितरों के निमित जल, जल का घड़ा, मौसमी फल, छाता आदि इस दिन दान करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे अपनी संतान को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

सामाजिक महत्व

निर्जला एकादशी पर दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। यह व्रत सामाजिक संवेदना का भी प्रतीक है, जब व्यक्ति स्वयं जल तक का त्याग करता है और दूसरों को जल पिलाता है। गर्मियों के इस कठिन समय में किसी प्यासे को पानी पिलाना महान पुण्य कार्य माना जाता है। इसीलिए इस दिन जगह-जगह पर शरबत, ठंडे जल की छबीले लगाई जाती है।

निर्जला एकादशी केवल उपवास का दिन नहीं, बल्कि आत्मनियंत्रण, त्याग, सेवा और भक्ति का महान पर्व है। यह व्रत न केवल शरीर को अनुशासित करता है, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है। जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करता है, वह सांसारिक क्लेशों से मुक्त होकर आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त करता है।

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