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संयम से मौन

एकदा
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वैदिक ज्ञान के विस्तार के क्रम में महर्षि वेदव्यास ने एक लाख श्लोकों वाले महाभारत को लिपिबद्ध करने का संकल्प लिया। वेदव्यास जी धाराप्रवाह श्लोकों का उच्चारण करते थे और गणेशजी एकाग्र होकर उसे लिपिबद्ध करते थे। महर्षि वेदव्यास जानते थे कि लेखन के दौरान गणेशजी पूरी तरह मौन थे। उन्होंने प्रश्न किया, ‘गणनायक, मैं आपके वाक‍्-संयम व मौन के अनूठे पालन को देखकर हतप्रभ था। कृपया मौन के महत्व से अवगत कराने की कृपा करें।’ गणेशजी ने बताया, ‘इंद्रियों का दुरुपयोग कदापि नहीं करना चाहिए। ऊर्जा तथा दीर्घ आयु प्राप्त करने के लिए इंद्रिय संयम बहुत महत्व रखता है।’ उन्होंने कहा, ‘महर्षि, वाक‍्-संयम को साध लेने से अन्य इंद्रियों का संयम स्वतः हो जाता है। अधिक बोलने से कई बार अनर्गल-अवांछित शब्द मुख से निकलते हैं। इससे राग, द्वेष, ईर्ष्या जैसे दुर्गुण पनपते हैं। इसलिए अच्छा यही है कि एक-एक शब्द सोच-समझकर बोला जाए।’ महर्षि वेदव्यास गणपति के श्रीमुख से मौन का महत्व सुनकर आनंद से पुलकित हो उठे।

प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी

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