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योग, भक्ति और मोक्ष की सिद्धभूमि

बदरी पुरी
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बदरी पुरी वह दिव्य भूमि है जहां भगवान श्रीहरि सतयुग से पद्मासन मुद्रा में ध्यानमग्न हैं। यह स्थान योग, तप, भक्ति और मोक्ष का अद्वितीय संगम है, जिसे योगियों ने सिद्धभूमि और भू-बैकुंठ कहा है।

डॉ. बृजेश सती

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भगवान श्रीहरि बैकुंठ धाम में सतयुग से लेकर कलियुग तक ध्यानावस्थित हैं। वो इस धरा पर इतने लंबे समय तक एक ही मुद्रा में लोक कल्याण के लिए विराजमान हैं और योग के सबसे बड़े प्रवर्तक हैं। यों तो केदारखंड धार्मिक दृष्टि से करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन यह भूमि योग और ध्यान का अद्वितीय केंद्र भी है। बदरी पुरी को भू-बैकुंठ धाम भी कहा जाता है। यहां भगवान श्रीहरि (बदरी विशाल) आज भी लोक कल्याण के लिए पद्मासन की मुद्रा में विराजमान है। यह योग की एक क्रिया है। बदरी विशाल नर नारायण पर्वत शृंखलाओं के मध्य, अलकनंदा नदी के समीप सतयुग से पद्मासन की मुद्रा में साधनारत हैं। बदरीनाथ धाम को अलग-अलग काल खंडों में अनेक नामों से पुकारा गया है। योगसिद्धों, साधकों और तपस्वियों के लिए यह यह भूमि मात्र तीर्थ ही नहीं, बल्कि मोक्ष का द्वार और योग की सिद्ध भूमि बताई गई है। यह वह स्थान है जहां, माता मूर्ति और धर्म के पुत्र नर और नारायण ने कठोर तप किया था। योगी इसे तपस्या और ध्यान की सर्वोच्च भूमि मानते हैं।

देश के चार धाम

चार युगों के अनुसार इस पृथ्वी पर चार दिशाओं में चार धाम स्थित हैं। पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी, दक्षिण में रामेश्वरम‌्, पश्चिम में द्वारिका पुरी और उत्तर में बदरी पुरी। ये चारों धाम युगों के अनुसार हैं। उत्तर भारत स्थित बदरी पुरी सतयुग का धाम है। इसी तरह रामेश्वरम भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित है। अतः यह त्रेतायुगीन है। द्वारकापुरी श्रीकृष्ण भगवान से जुड़ी है। यह धाम द्वापरयुग तथा जगन्नाथ पुरी कलियुग का धाम है। यहां भगवान काष्ठ विग्रह के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

ऐसी प्रचलित मान्यता है कि भगवान विष्णु रामेश्वर में स्नान करते हैं। बदरीपुरी में ध्यान, जगन्नाथ पुरी में प्रसाद ग्रहण करते हैं और द्वारिका पुरी में शयन करते हैं।

भगवान विष्णु और पद्मासन मुद्रा

बदरीपुरी में भगवान बदरी विशाल पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं। पद्मासन को भगवान विष्णु से जोड़ा जाता है। यह ध्यान के लिए सबसे अच्छी मुद्राओं में से एक माना जाता है। बदरीनाथ को सतयुग में मुक्ति प्रदा के नाम से जाना जाता था। त्रेतायुग में भगवान विष्णु का यह स्थान योग सिद्ध के नाम से प्रसिद्ध था। इसको योग सिद्ध इसलिए कहा जाता था। क्योंकि जो ऋषि, मुनि संत, साधक योग क्रियाएं जानते थे, उनको ही भगवान नारायण के दर्शन सुलभ थे।

योगसिद्ध बदरीनाथ धाम को एक सामान्य तीर्थ नहीं, बल्कि योग की चरम अवस्था की भूमि, तप की सिद्धि स्थली, और मोक्षप्राप्ति के द्वार के रूप में मानते हैं। द्वापर में विशाला पुरी और कलियुग में यह बदरिकाश्रम के नाम के जाना जाता है। पंच बदरियों में दो बदरी, योग बदरी पांडुकेश्वर और ध्यान बदरी उर्गम में हैं। भगवान श्रीहरि योग और ध्यान मुद्रा में हैं। इसलिए इनका नाम योग बदरी और ध्यान बदरी है।

ऐसी मान्यता है कि द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने भी यहां कर तप और योग किया था। पद्मासन को कमल मुद्रा भी कहा जाता है। यह मुद्रा ध्यान और सांस लेने के अभ्यास के लिए किया जाता है।

शिव तांडव भी योग

शिव तांडव स्तोत्र, भगवान शिव के तांडव नृत्य का वर्णन है। यह आध्यात्मिक ऊर्जा का शरीर में संचरण करता है। योग में, तांडव को ब्रह्मांडीय नृत्य और आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। शिव तांडव स्तोत्र के कई लाभ बताए गए हैं। जहां सका पाठ करने से आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है वहीं यह योग और ध्यान में सहायक होता है।

शिव को समाधिस्थ भी किया जाता है। केदारनाथ मंदिर के जब कपाट शीतकाल के लिए बंद होते हैं तो भगवान केदारनाथ को समाधिस्थ किया जाता है। समाधि को योग का आठवां और अंतिम चरण माना जाता है।

भगवत गीता में योग

योग का मूल उद्देश्य काम, क्रोध, लोभ आदि से मन को मुक्त करना। भगवद्गीता में योग के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। गीता का सार ही योग है। गीता में योग शब्द का अर्थ शारीरिक आसन नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला भी बताई गई है।

कर्म योग (कार्य के द्वारा योग), अर्थात बिना फल की इच्छा किए अपना कर्तव्य करना ही श्रेष्ठ योग है।

ज्ञान योग (बुद्धि या विवेक द्वारा योग)– यह आत्मा, ब्रह्म और संसार की प्रकृति के ज्ञान के माध्यम से मोक्ष की बात की गई है। भक्ति योग (प्रेम और समर्पण का मार्ग)– ईश्वर के प्रति पूर्ण प्रेम, श्रद्धा और समर्पण से प्राप्त योग। जो व्यक्ति आहार और विहार करने वाला है। कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाला है। परिमित शयन और जागरण करता है। ऐसे योगी का योग उसके समस्त दुःखों का नाश कर देता है।

योग केवल कुछ आसन या शारीरिक व्यायाम ही नहीं है, बल्कि यह हमारी धार्मिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत भी है। योग और भक्ति का मार्ग एक है।

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