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शिव भक्ति व कृतज्ञाता जताने का श्रावण मास

सावन के देव
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आर.सी.शर्मा

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शिव ही सावन के देव हैं। भारत में सावन माह या श्रावण मास एक पवित्र धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महीना है। यह महीना मुख्यतः भगवान शिव को समर्पित होता है। सावन माह की गणना हिंदू पंचांग के चतुर्मास के दूसरे माह के रूप में होती है। इसे भगवान शिव का अत्यंत प्रिय महीना माना जाता है, क्योंकि यही वह माह था, जब माता पार्वती ने पति के रूप में शिवजी को पाने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें स्वीकार किया था। सावन के पूरे महीने में सावन सोमवारी व्रत रखना बहुत पवित्र माना जाता है।

सोमवारी व्रत में हर सोमवार को विशेष व्रत और पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विशेषकर अविवाहित कन्याएं इस व्रत को योग्य वर प्राप्ति के लिए करती हैं। वे पूरे माह शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग, शहद, गंगाजल आदि अर्पित करके विशेष पूजा अर्चना करती हैं। भगवान शिव की उपासना, व्रत, जलाभिषेक और भक्ति से भरे महीने में समूचा वातावरण शिवमय हो जाता है। भगवान शिव के अलावा हिंदू मान्यता में कोई ऐसा दूसरा देवता नहीं है, जिसके लिए पूरा एक महीना समर्पित होता हो।

इस संबंध में पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। जब देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उससे अनेक रत्न निकले और इन रत्नों के साथ दुनिया का सबसे तीव्र हलाहल विष भी निकला था। इस विष से तीनों लोक नष्ट हो सकते थे। इसलिए देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वह इस हलाहल विष से उन्हें छुटकारा दिलाएं। उन्होंने इस महाविष को स्वयं ही पी लिया। लेकिन उन्होंने इस विष को गले के नीचे नहीं उतरने दिया। अतः उनका गला इस विष के कारण नीला पड़ गया। इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहते हैं। यह घटना श्रावण मास में ही हुई थी और उन्होंने यह महान त्याग तीनों लोकों की रक्षा के लिए किया था। इसलिए इस मास को उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और भक्ति जताने के लिए उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

मान्यता यह भी है कि सावन के महीने में बारिश की जो झड़ी लगती है, वह झड़ी इसलिए लगती है; क्योंकि जब भगवान शिव ने हलाहल विष पीया था, तो उनका समूचा शरीर बेहद तीव्र आग से सुलग रहा था। इस सुलगन को ठंडा करने के लिए पूरे महीने सावन ने रिमझिम बारिश करके उन्हें इस आग की तपन से बचाने का काम किया था। माना जाता है कि वर्षा की बूंदें भगवान शिव को शांत और तृप्त करने के लिए गिर रही हैं।

इस महीने उत्तर भारत में विशेष तौर पर कांवड़ यात्रा का आयोजन होता है। लाखों शिव भक्त कांवड़िये गंगा में हरिद्वार, गंगोत्री तथा अन्य कई पवित्र तीर्थस्थलों से जल भरकर लाते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। यह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है बल्कि त्याग, तप, अनुशासन और सामूहिक भक्ति का महोत्सव है। पूरा सावन का महीना शिव भक्ति मंे लीन रहता है। इस महीने रुद्राभिषेक, मंत्र जाप और भजन कीर्तन होते रहते हैं। क्योंकि इस महीने के परम देव भगवान शिव ही हैं।

यह भगवान शिव के वैराग्य और शांत स्वरूप से भी मेल खाता है। शिव का वास कैलास पर्वत पर है, जहां शांति, हिम और ध्यान का वातावरण होता है। सावन उसी ऊर्जा का विस्तार प्रतीत होता है। यही कारण है कि यह महीना आध्यात्मिक साधना, जप-तप, सयंम और आत्मशुद्धि का महीना माना जाता है। जैसे कि भगवान शिव स्वयं हैं। इसलिए सावन के महीने को शिव भक्ति और आत्मिक जागरण का महीना भी कहते हैं।

इस महीने का अपना आध्यात्मिक महत्व भी बहुत है। साधु, संन्यासी इस महीने को जप, तप और ध्यान का महीना मानते हैं। विशेष रूप से ब्रह्मचर्य, संयम और उपवास पर बल दिया जाता है। इस महीने भक्तगण रुद्राभिषेक करते हैं, रुद्रपाठ करते हैं, मंत्र जाप और शिव पुराण का श्रावण करते हैं। माना जाता है कि इस महीने ध्यान और भक्ति का प्रभाव सबसे तीव्र होता है और आत्मा ईश्वर से आसानी से जुड़ती है। इ.रि.सें‍.

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