एक बार भारत की प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जनकी अमल को एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाषण देने के लिए इंग्लैंड आमंत्रित किया गया। वहां उन्होंने भारत की खेती, पौधों और मानसून की विशेषताओं पर बोलते हुए एक बात कही—बारिश की पहली बूंद जब सूखी ज़मीन को छूती है तो जो खुशबू आती है, वह विज्ञान से ज़्यादा भाव का विषय है। यह सुनकर सभी वैज्ञानिक मुस्कराए। तभी एक विदेशी वैज्ञानिक ने सवाल किया, डॉ. जनकी, क्या उस खुशबू को वैज्ञानिक भाषा में भी समझाया जा सकता है? जनकी अमल कुछ क्षण मौन रहीं, फिर मुस्कराकर बोलीं, ‘जब कोई किसान रोज़ सूखी धरती को निहारता है, तो उसमें एक आत्मीय रिश्ता बन जाता है। पहली बारिश जब गिरती है, तो सिर्फ़ मिट्टी नहीं भीगती, उसका मन भी भीगता है। यह खुशबू ‘पेट्रीकोर’ नामक रसायन के कारण होती है, लेकिन इसके पीछे इंतज़ार, समर्पण और जीवन की गंध छुपी होती है।’ यह सुनकर पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। डॉ. जनकी अमल ने उस दिन विज्ञान को भावना से जोड़कर यह साबित किया कि हर खोज के पीछे संवेदनशीलता भी होती है।
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