ओंकार हरिदास
जगत के चर-अचर प्राणियों की काया पंच महाभूतों से निर्मित है, जिस पर निश्चित रूप से ब्रह्मांड में विचरण करने वाले ग्रह व नक्षत्रों का सीधा प्रभाव पड़ता है। हमारी पृथ्वी भी सौर परिवार का एक गतिशील ग्रह है, जो प्रतिपल अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाकर रात्रि-दिवस, मास, वर्ष एवं ऋतुआें का निर्धारण करती है। इसी एक वर्ष की अवधि में 12 अमावस्याओं की तिथियाें का निर्धारण भी यही गतिशील ग्रह करता है। इन 12 अमावस्याओं में वर्ष भर में सोमवती अमावस्या तिथि का योग दो बार बनता है। इस वर्ष प्रथम सोमवती अमावस्या 31 जनवरी को थी और दूसरी आज है। इस बार सोमवती अमावस्या पर ग्रह-नक्षत्रों का जो संयोग बन रहा है, वह अत्यंत शुभ व कल्याणकारी है। ऐसा संयोग लगभग 30 वर्ष के पश्चात बन रहा है जब शनि कुम्भ रािश में अधिष्ठित होंगे। ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार वृषभ राशि में बुध ग्रह का उदय भी इसी तिथि को होगा। इस प्रकार सोमवती अमावस्या को पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि का योग भी बनेगा।
पितर कार्यों के लिए विशेष दिन
अमावस्या के दिन सूर्य व चंद्रमा एक सीध में होते हैं, इसलिए इसका एक विशेष महत्व है। ग्रह-नक्षत्र विज्ञान, वैदिक शास्त्रों एवं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी विशेष तिथि को सूर्य से ‘अमा’ नाम की किरण अपनी अद्भुत आभा लिए दैदीत्यमान होती है, इसलिए इस तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है। सोमवती अमावस्या के शुभ अवसर पर पितरों की शांति हेतु व्रत, पूजा व तर्पण का विधान है। इस तिथि को पितृ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ व कल्याणकारी माना जाता है। इस दिन गंगा के पवित्र जल से स्नान करके दान, व्रत व पूजा करने से जातक को मनवांछित फल प्राप्त होता है। इसी के साथ ग्रह-क्लेश व दुखों से मुक्ति मिलती है तथा असीम आनंद की प्राप्ति होती है। साथ में पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
जहां अमावस्या को पितृ पूजन किया जाता है, वहीं पूर्णिमा देव पूजन के लिए शुभ मानी जाती है। पितृ दोष से पीड़ित जातक अमावस्या के दिन पिंडदान कर अतिशय पुण्य के भागी बन सकते हैं।
सुहागिनों के लिए सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व माना गया है। इस शुभ तिथि को भगवान शिव व पार्वती की अाराधना व व्रत करने से सुहागिनों को अभीष्ट सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सुहाग की लंबी आयु के लिए इस दिन पूजा व उपवास रखने से दाम्पत्य जीवन में सुख की प्राप्ति होती है।