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स्मरण से उद्धार

एकदा
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एक बार गौ-लोक धाम में श्रीराधा ने श्रीकृष्ण से विनम्रतापूर्वक पूछा, ‘हे माधव! कंस आपके सगे मामा होते हुए भी आपके माता-पिता को कष्ट देता रहा, आपका निरंतर अपमान करता था, संतों का उपहास उड़ाता था, और बार-बार आपकी हत्या के प्रयास करता था। फिर भी, उस महापापी को आपके ही हाथों परम मोक्ष कैसे प्राप्त हो गया? उसके ऐसे कौन से पुण्य थे?’ श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले, ‘राधे, कंस जो कुछ भी करता, जो कुछ भी सोचता, वह सब मेरे ही बारे में होता था। चाहे वह मुझसे द्वेष करता था, क्रोधित होता था या भयभीत रहता था, लेकिन उसका मन हर पल मेरे स्मरण में लगा रहता था। जो व्यक्ति निरंतर मेरा स्मरण करता है—चाहे वह प्रेम से करे या भय से—उसे मैं अंततः मोक्ष ही देता हूं।’

प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी

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