वर्ष 1931-32 की बात है। जेल से छूटने पर देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पं. नेहरू के घर इलाहाबाद आये। स्टेशन पर आये लोगों ने राजेन्द्र बाबू को नहीं पहचाना। खाली मोटर आनन्द भवन लौट आयी। कुछ देर बाद इक्का से राजेन्द्र बाबू आनन्द भवन पहुचे। वहां सब लोग सो चुके थे। उन्होंने किसी को नहीं जगाया। सभी खुले फर्श पर सो रहे थे। रात्रि में जब उनका दमा उखड़ा तो खांसी आने लगी। खांसी की आवाज सुन कर लोग बाहर जाये तो देखा कि श्रद्धेय बाबूजी थे। सबका सिर शर्म से झुक गया। श्रद्धेय बाबूजी को सादर आनन्द भवन के अन्दर ले जाया गया। यूं ही एक बार राजेन्द्र बाबू रेलगाड़ी से गया जा रहे थे। उसी गाड़ी में एक बारात जा रही थी। लड़के कुछ उपद्रवी थे। बाबूजी को सीधा-साधा ग्रामीण समझ कर उन्हें बेवकूफ बनाते, चिढ़ाते रहे और वे मुस्कराते रहे। एक ने उनका छाता ले लिया। ‘गया’ गाड़ी पहुंची तो अपार भीड़ उनके स्वागतार्थ मौजूद थी। भीड़ देखकर बाराती अपने किये पर पछताने लगे। वे बाबूजी से माफी मांगने लगे तो राजेन्द्र बाबू ने कहा, ‘आप का दोष नहीं। दोष है वर्तमान अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का-फिर आप तो बाराती हैं। स्मरण रखें ‘शराफत सब से बड़ी पूंजी है।’
प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री