एक बार ईश्वर चंद्र विद्यासागर अपने एक मित्र के साथ कलकत्ता की सड़कों पर टहल रहे थे। उन्होंने देखा कि एक गरीब रिक्शा चालक अपने रिक्शे को खींचने में बहुत कठिनाई का सामना कर रहा है। रिक्शे पर एक मोटा आदमी बैठा था जो लगातार रिक्शा चालक को डांट रहा था कि वह तेजी से चले। विद्यासागर जी यह देखकर बहुत व्यथित हुए। वे तुरंत रिक्शा चालक के पास गए और उससे कहा कि वह थोड़ा आराम कर ले। फिर उन्होंने खुद रिक्शे को खींचना शुरू कर दिया। उनके मित्र और आस-पास के लोग यह देखकर स्तब्ध रह गए। कुछ दूर चलने के बाद रिक्शे पर बैठे व्यक्ति ने पीछे मुड़कर देखा और उसे अहसास हुआ कि उसका रिक्शा खींच रहे व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर हैं। वह तुरंत रिक्शे से उतर गया और विद्यासागर जी से क्षमा मांगने लगा। विद्यासागर जी ने उस व्यक्ति को समझाया कि हर इंसान की गरिमा का सम्मान करना चाहिए, चाहे वह किसी भी वर्ग या पेशे का हो। उन्होंने कहा कि सच्चा सम्मान पद या धन से नहीं, बल्कि मानवता और करुणा से आता है। प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार
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