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सज़ा की तार्किकता

एकदा
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गृहयुद्ध के समय एक युवा सैनिक विलियम स्कॉट गश्त के दौरान थकान से चूर होकर सो गया। सैन्य अनुशासन के अनुसार इसकी सजा मौत थी। सैनिक अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी। जब यह खबर राष्ट्रपति लिंकन तक पहुंची, तो उन्होंने तुरंत मामले की फाइल मंगवाई। लिंकन ने अधिकारियों से पूछा, ‘क्या यह सच है कि यह युवक लगातार दो रात गश्त पर रहा और तीसरी रात नींद से हार गया?’ अधिकारी बोले, ‘हां, सर।’ लिंकन ने गहरी सांस ली और कहा, ‘तो फिर दोष उसका नहीं, थकान का है। मैं नहीं मानता कि अमेरिका अपने ही बेटे को सिर्फ सो जाने की वजह से गोली से मार दे।’ उन्होंने सजा को माफ कर दिया और सैनिक को वापस उसकी यूनिट में भेज दिया। कुछ महीनों बाद वही सैनिक एक युद्ध में वीरतापूर्वक लड़ा और अपने साथियों की जान बचाई। युद्ध के बाद उसने कहा, ‘अगर राष्ट्रपति ने उस दिन मुझे क्षमा न किया होता, तो आज यह बलिदान संभव न होता।’

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