भगवान बुद्ध एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठे हुए थे। हर भक्त की भेंट स्वीकार कर रहे थे। तभी एक वृद्धा आई। उसने कांपती आवाज में कहा, ‘भगवन् मैं बहुत गरीब हूं। मेरे पास आपको भेंट देने के लिए कुछ भी नहीं है। हां, आज एक आम मिला है। मैं इसे आधा खा चुकी थी, तभी पता चला कि तथागत आज दान ग्रहण करेंगे। अतः में यह आम आपके चरणों में भेंट करने आई हूं। कृपा कर इसे स्वीकार करें।’ गौतम बुद्ध ने अपनी अंजुरी (पात्र) में वह आधा आम प्रेम और श्रद्धा से रख दिया, मानो कोई बड़ा रत्न हो। वृद्धा संतुष्ट भाव से लौट गई। वहां उपस्थित राजा यह देखकर चकित रह गया। उसे समझ नहीं आया कि भगवान बुद्ध वृद्धा का जूठा आम प्राप्त करने के लिए आसन छोड़कर हाथ पसारकर नीचे तक क्यों आएं? पूछा, ‘भगवन् इस वृद्धा और इसकी भेंट में ऐसी क्या विशेषता है? बुद्ध मुस्कराकर बोले, ‘राजन, इस वृद्धा ने अपनी सम्पूर्ण संचित पूंजी मुझे भेंट कर दी। जबकि आपने मुझे अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति का केवल एक छोटा भाग ही भेंट किया है। दान के अहंकार में डूबे हुए बग्घी पर चढ़कर आए हो। वृद्धा के मुख पर कितनी करुणा और कितनी नम्रता थी। युगों-युगों के बाद ऐसा दान मिलता है। प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी