एक बार स्वामी विवेकानंद का एक अनुयायी गंभीर रूप से बीमार हो गया। वह पहले अपनी दौलत पर बहुत गर्व करता था और अक्सर कहता, ‘धन से सब कुछ संभव है।’ लेकिन बीमारी की हालत यह थी कि वह खुद से करवट भी नहीं बदल पा रहा था। स्वामी विवेकानंद ने मुस्कराते हुए पूछा, ‘बोलो, कहां गई धन की ताकत?’ फिर उन्होंने कहा, ‘वत्स, आज समझ लो कि ऐश्वर्य का अर्थ केवल धन नहीं होता। यह हमारी चेतना का वह स्तर है, जो हमें उचित चीज़ों के योग्य बनाता है। आरोग्य, बुद्धिमत्ता, अच्छी मित्रता, सज्जनता और स्वतंत्र जीवन — ये सब भी ऐश्वर्य के रूप हैं। ऐश्वर्य का अर्थ है ऐसा जीवन जिसमें शान और स्वाभिमान हो। यदि धन न भी हो, लेकिन ये गुण हों, तो व्यक्ति ऐश्वर्यवान ही होता है।’
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे
Advertisement
Advertisement
Advertisement
×

