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अंतर्मन की शक्ति

एकदा
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भेड़ों के झुंड में मेमनों को खाने के प्रलोभन रूपी भ्रम और छीना-झपटी के चलते शेरनी का नवजात शावक उससे अलग हो भेड़ों के रेवड़ का हिस्सा हो गया। जिसका लालन-पालन गड़रिये ने भेड़ों के साथ किया। कालांतर शावक भी भेड़ों की तरह मिमयाने लगा। एक बार एक युवा शेर को भेड़ की तरह मिमयाता देख शेरनी को बेहद गुस्सा आया। वह युवा शेर को खींचकर एक तालाब के किनारे ले गई। वहां अपने व युवा शेर के चेहरों की छाया को पानी में दिखाते हुए शेरनी दहाड़ी। उसने युवा शेर पर गुर्राते हुए कहा तुम दहाड़ने के लिये पैदा हुए हो, मिमयाने के लिये नहीं। भारत की एक पारंपरिक लोककथा का पुनर्कथन करते हुए ‘भयमुक्त जीवन’ में परमहंस योगानन्द कहते हैं कि मनुष्य इस ब्रह्मांड के दिव्य-शेर यानी सर्वशक्तिमान के स्वरूप के अंश के रूप में रचा गया है। लेकिन देह चेतना की दुर्बलताओं में फंसे रहने के कारण रोग, अभाव, दु:ख आदि से जीवनभर ग्रस्त रहता है। हमें देह-नश्वरता के भ्रम व अज्ञान से मुक्त होकर अंतर्मन की शक्ति को पहचानना चाहिए।

प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा

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