संत तुकाराम प्रभु भजन और कीर्तन में इतने लीन रहा करते थे कि कभी कभी खेतों पर मज़दूरी करने जाना भी भूल जाते थे। उनकी पत्नी जिजाई उन्हें अपने दो बच्चों का वास्ता देकर उन्हें काम पर जाने के लिए जोर डालती थी ताकि परिवार का भरण पोषण हो सके। पत्नी की बात मानकर अगले दिन तुकाराम दो रोटी साथ मे बांधकर प्रभु स्मरण करते हुए खेतों की ओर निकल गए। गांव के पंडे ने, जो कि तुकाराम से ईर्ष्या रखता था, वहां आकर कुछ सांड खेतों में छोड़ दिए ताकि तुकाराम का मालिक उन पर खेतों की रक्षा न कर पाने का आरोप लगा सके और उन्हें काम से निकाल दे। सांडों ने खड़ी फसल व मुंडेर तहस-नहस कर दी। तुकाराम बिना घबराए एक जगह खड़े हो गए और अपने इष्ट को याद करते हुए भजन गाने में तल्लीन हो गए। देखते ही देखते सब यथावत् हो गया। नष्ट फसल फिर से खड़ी हो गई और मुंडेर पूर्ववत बन गई। अब उस खेत में इतना अन्न उग आया था कि वह पूरे गांव के लिए पर्याप्त था। पंडे ने जब यह लीला देखी तो लज्जित होकर तुकाराम के चरणों में गिर पड़े।
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