फ्रेंच कवि लैटिमर सादगीपसंद थे। शानो-शौकत से उन्हें उतना लगाव नहीं था, फिर भी उनके मन में एक घोड़ागाड़ी खरीदने की चाहत थी। लैटिमर साहब इस हेतु तिनका-तिनका जोड़ने लगे, अपना पेट काटकर रुपया जोड़ना प्रारंभ किया। दो वर्ष बाद उनके पास एक हजार फ्रेंक जुट गए। उन्होंने घोड़ागाड़ी खरीदने की सोची। इसी बीच उनकी विधवा पड़ोसिन उनके पास आई और रोते-बिलखते उन्हें अपनी व्यथा सुनाने लगी। उसके चार छोटे बच्चे थे और वह पति की मृत्यु के पश्चात उनका जैसे-तैसे पालन कर रही थी। उसके घर पर साहूकार कब्जा करना चाहता था। वह रो रही थी कि अब चार बच्चों को लेकर कहां जाएगी? लैटिमर साहब ने तुरंत ही अपने जमा किए हुए एक हजार फ्रेंक उस विधवा स्त्री को दे दिए। संवेदनशीलता ही मानवता की पहचान है।
प्रस्तुति : नीता देवी
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