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Pauranik Kathayen : जब अकबर की ना चली एक भी चाल, मां ज्वाला देवी के दरबार में झुक गया था बादशाह का सिर

इतिहास का वो पल जब आस्था से झुक गया था सम्राट अकबर का सिर
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चंडीगढ़, 3 मई (ट्रिन्यू)

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Pauranik Kathayen : भारत भूमि धार्मिक आस्थाओं, पौराणिक कथाओं और चमत्कारिक घटनाओं से भरी हुई है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर भी ऐसी ही एक आस्था और चमत्कार का प्रतीक है। यह मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां मां की जीभ गिरी थी।

किंवदंती है कि यहां बिना किसी ईंधन के स्वयं प्रज्वलित होने वाली अग्नि की ज्वालाएं सदियों से जल रही हैं। इन्हीं चमत्कारिक ज्वालाओं के कारण यह स्थान "ज्वाला देवी" के नाम से प्रसिद्ध है। इस अद्भुत मंदिर और मुगल सम्राट अकबर से जुड़ी एक बेहद दिलचस्प और ऐतिहासिक कथा है, जो न केवल आस्था बल्कि शासकों की मानसिकता और देवी के चमत्कार को दर्शाती है।

कथाओं के अनुसार, 16वीं सदी में जब अकबर भारत पर शासन कर रहा था तब उसकी ख्याति एक शक्तिशाली और बुद्धिमान सम्राट के रूप में थी। वह धर्म के प्रति सहिष्णु माना जाता था। किंतु कहीं न कहीं उसे चमत्कारों में पूर्ण विश्वास नहीं था। जब उसे ज्वाला देवी मंदिर की चमत्कारिक अग्नि के बारे में पता चला, जो बिना किसी तेल, लकड़ी या गैस के लगातार जल रही थी तो उसकी जिज्ञासा जाग उठी। अकबर को लगा कि यह या तो अंधविश्वास है या कोई भ्रम।

वह स्वयं इस चमत्कार की सच्चाई जानना चाहता था। उसने अपने दरबार के कुछ विद्वानों और सिपाहियों को मंदिर में भेजा, ताकि वे इसका निरीक्षण करें और सत्य पता लगाएं। जब अकबर के सिपाही और विद्वान वहां पहुंचे, उन्होंने देखा कि वहां कई स्थानों से नीली-पीली लौ निकल रही थी और वह बिना किसी ईंधन के जल रही है। उन्होंने इसकी जांच की, लेकिन उन्हें कोई ठोस कारण नहीं मिला। उन्होंने अग्नि को बुझाने का प्रयास भी किया। पानी डाला, मिट्टी से ढंका लेकिन अग्नि जलती रही।

यह देखकर अकबर को विश्वास नहीं हुआ। उसने स्वयं मंदिर की यात्रा करने का निश्चय किया। जब अकबर वहां पहुंचा, तो उसने अग्नि को बुझाने के लिए लोहे की छड़ों और पानी की धाराओं का प्रयोग करवाया। अकबर ने एक नहर बनवाकर सैनिकों से उसमें पानी डलवाया। फिर उस नहर का मुख ज्योतें की ओर कर दिया, लेकिन इससे भी ज्योतें नहीं बुझीं।

तब अकबर ने देवी की शक्ति और महिमा को स्वीकार किया और बाद में मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया। देवी ने छत्र स्वीकार नहीं किया। वह किसी अन्य धातु में बदल गया। ज्वाला देवी मंदिर की अग्नि आज भी जल रही है और वैज्ञानिक भी इसके स्रोत को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यह एक प्राकृतिक गैस है जो जमीन के नीचे से निकल रही है। सवाल यह उठता है कि बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के यह हजारों सालों से कैसे जल रही है? आज भी लाखों श्रद्धालु ज्वाला देवी के दर्शन करने आते हैं और अग्नि की उन लौकिक ज्वालाओं के आगे शीश नवाते हैं, जिनके सामने एक सम्राट की भी शक्ति क्षीण पड़ गई थी।

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