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Pauranik Kathayen : जब देवी गंगा को ऋषि से मिला था श्राप, अपने ही पुत्रों को नदी में बहाने लिए हुई थी मजबूर

राजा शांतनु ने उनकी शर्त मान ली और दोनों का विवाह संपन्न हुआ
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चंडीगढ़, 30 जनवरी (ट्रिन्यू)

Pauranik Kathayen : गंगा को माता के रूप में पूजा जाता है। नदी के दिव्य रूप में पृथ्वी पर विद्यमान मां गंगा इस ग्रह के निवासियों को जीवन प्रदान करती हैं और कई लोगों के पापों को धोती हैं। उनसे जुड़ी कई रोचक कथाएं हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार, उन्होंने अपने सात पुत्रों को जन्म के तुरंत बाद ही मार डाला था। चलिए जानते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया...

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गंगा ने शांतनु के सामने रखी ये शर्त

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा शांतनु को गंगा नदी के किनारे खड़ी एक खूबसूरत महिला से प्यार हो गया, जोकि स्वंय देवी गंगा थी। राजा शांतनु उनकी खूबसूरती पर इतना मोहित हो गए कि उनसे शादी का प्रस्ताव रखा। गंगा देवी सहमत हो गई लेकिन उन्होंने राजा के सामने ये शर्त रखी थी कि वह कभी भी उसके किसी भी काम पर सवाल नहीं उठाएंगे।

देवी ने गंगा नदी में बहाए सात पुत्र

अगर उन्होंने ऐसा किया तो वह उन्हें छोड़कर चली जाएगी। राजा ने शर्त मान ली और दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बीतते समय के साथ देवी गंगा ने कई शिशु को जन्म दिया, लेकिन वह तुरंत बाद उन्हें गंगा नदी में डुबो देती थीं। कुछ समय तक राजा शांतनु यह सब देखकर भी चुप्पी साधे रहे लेकिन फिर उनसे रहा नहीं गया। इसी तरह देवी गंगा ने अपने सात पुत्रों को नदी में बहा दिया।

वशिष्ठ ऋषि से मिला था श्राप

जब देवी गंगा 8वें पुत्र को गंगा नदी में डुबाने वाली थीं तो राजा शांतनु से उन्होंने इसका कारण पूछा। तब उन्होंने अपनी पहचान बताते हुए कहा कि इस पर देवी गंगा ने राजा को उत्तर दिया कि मैं अपने पुत्रों को वशिष्ठ ऋषि के श्राप मुक्त कर रही हूं। देवी गंगा ने कहा कि उनके बच्चे वसु थे, जिन्हें नश्वर रूप में जन्म लेने का श्राप मिला था।

गंगा ने आठ वसुओं के उद्धार के लिए ऐसा किया था। वसुओं को इंद्र और विष्णु का अनुयायी माना जाता है और वे स्वर्ग में उनके साथ रहते हैं। ये आठ वसु अलग-अलग तत्वों जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सूर्य, आकाश, चंद्रमा और सितारे का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसलिए भीष्म पितामह को झेलने पड़े दुख

ऋषि वशिष्ठ ने द्वारा मिले श्राप के कारण इन्हें पृथ्वी पर बहुत दुख-पीड़ा सहने पड़ेंगे। मैं उन्हें गंगा में विसर्जित करके श्राप मुक्त कर रही थीं और उन्हें स्वर्ग वापिस भेज रही थीं। मगर, राजा शांतनु ने आठवे पुत्र को बचा लिया, जो भीष्म पितामह थे। ऋषि श्राप के कारण ही भीष्म पितामह को किसी भी तरह का सांसारिक सुख नहीं मिला और अपनी मृत्यु तक उन्होंने कई कष्टों का सामना किया।

डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।

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