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Pauranik Kathayen : जब सृष्टि का निर्माण करते हुए दुविधा में पड़ गए थे ब्रह्म देव, भगवान शिव ने लिया था अर्धनारीश्वर रूप

Pauranik Kathayen : जब सृष्टि का निर्माण करते हुए दुविधा में पड़ गए थे ब्रह्म देव, भगवान शिव ने लिया था अर्धनारीश्वर रूप
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चंडीगढ़, 24 फरवरी (ट्रिन्यू)

Pauranik Kathayen : भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप अद्भुत है, जो उनके अद्वितीय स्वभाव, अर्ध-पुरुष और अर्ध-स्त्री के समन्वय का प्रतीक है। भगवान शिव ने आधे पुरुष और आधे महिला का स्वरूप धारण किया, जो उनके सर्वव्यापकता, समर्पण और सृजन शक्ति को दर्शाता है। यह रूप विशेष रूप से धर्म, सृजन और सशक्तिकरण का संदेश देता है।

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भगवान शिव ने क्यों लिया अर्धनारीश्वर का रूप

अर्धनारीश्वर रूप के पीछे एक ऐतिहासिक और धार्मिक कथा है। यह कथा देवी पार्वती और भगवान शिव के संबंधों को लेकर जुड़ी हुई है। एक दिन देवी पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि वे हमेशा ध्यान में लीन क्यों रहते हैं। भगवान शिव ने इस सवाल का उत्तर देने के लिए यह रूप धारण किया। भगवान शिव के इस रूप में आधा शरीर पुरुष के रूप में था, जो उनके शक्ति, सृजन और विनाश के स्वभाव को दर्शाता था। वहीं आधा शरीर स्त्री के रूप में था, जो शक्ति और ममता की प्रतीक थी।

ऐसा है शिव का अर्धनारीश्वर रूप

अर्धनारीश्वर रूप के माध्यम से भगवान शिव यह दर्शाना चाहते थे कि संसार में पुरुष और स्त्री दोनों का समान महत्व है। स्त्री और पुरुष के बीच का संतुलन ही जीवन की सच्ची सृष्टि और विकास का कारण है। अर्धनारीश्वर रूप में उनके दाहिने भाग पर शिव और बाएं भाग पर देवी पार्वती का रूप दिखाया गया है।

इस रूप का मुख्य उद्देश्य यह था कि शिव और पार्वती के बीच के संबंधों को प्रदर्शित किया जा सके। यह रूप सिखाता है कि जीवन में दोनों पहलुओं-पुरुष और स्त्री, शक्ति और संतुलन, क्रिया और विश्राम-का समन्वय आवश्यक है। अर्धनारीश्वर रूप का दर्शन यह भी बताता है कि दोनों ही एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। दोनों का मिलन ही सम्पूर्णता का प्रतीक है।

ब्रह्मा जी से भी जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण कर रहे थे तब उन्हें ज्ञात हुआ कि सभी रचनाएं जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी और उन्हें हर बार दोबारा से सृजन करना होगा। इस दुविधा को दूर करने के लिए वह भगवान शिव के पास गए।

तब भगवान शिव ने स्त्री-पुरुष यानि अर्धनारीश्वर स्वरुप में ब्रह्मा जी को दर्शन दिए। उन्होंने इस स्वरुप में ब्रह्मा जी को दर्शन देकर प्रजननशिल प्राणी के सृजन की प्रेरणा दी। इस तरह शिव से शक्ति ने अलग होकर दक्ष के घर उनकी पुत्री माता सति के रूप में जन्म लिया, जिसके बाद सृष्टि की शुरुआत हुई।

डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।

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