Tribune
PT
About Us Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

Pauranik Kathayen : ऋषियों के श्राप से राक्षस योनि में जन्में वैकुंठ धाम के द्वारपाल, श्रीहरि ने अपने हाथों से किया था अंत

Pauranik Kathayen : ऋषियों के श्राप से राक्षस योनि में जन्में वैकुंठ धाम के द्वारपाल, श्रीहरि ने अपने हाथों से किया था अंत
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

चंडीगढ़, 2 फरवरी (ट्रिन्यू)

Pauranik Kathayen : भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में तो लगभग हर कोई जानता है। मगर क्या आप जानते हैं उन्होंने श्रीकृष्ण, भगवान राम और वराह अवतार अपने ही द्वारपाल का अंत करने के लिए लिया था। दरअसल, रावण किसी समय में भगवान विष्णु का द्वारपाल था। एक ऋषि का मजाक उड़ाने के वजह से उसे श्राप मिला था कि वह राक्षस योनि में पैदा होगा।

Advertisement

श्रीमद्भागवत महापुराण के तीसरे अध्याय के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी ने अनेक लोकों की रचना करने के लिए तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार नामक चार ऋषियों के रूप में अवतार लिया। भगवान के वैकुंठलोक में जय-विजय नामक दो द्वारपाल थे। एक बार सनकादि मुनि उनसे मिलने वैकुंठ आए।

जब सनकादि मुनि द्वार से जाने लगे तो जय-विजय ने उन्हें रोक लिया और उन पर हंसने लगे। इस कारण सनकादिक ऋषि को बहुत बुरा लगा। क्रोध में आकर उन्होंने दोनों को अगले तीन जन्मों में राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। अपनी गलती का एहसास होने पर उन्होंने क्षमा मांगी, जिसके बाद सनकादि मुनि ने उनसे कहा कि तीनों जन्मों में वे स्वयं भगवान श्री हरि के हाथों मारे जाएंगे।

तीन जन्मों के बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। पहले जन्म में जय और विजय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में जन्मे थे। भगवान विष्णु ने वराह का अवतार लिया और नरसिंह के अवतार में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप का वध किया। दूसरे जन्म में जय-विजय ने रावण और कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया।

उन्हें मारने के लिए भगवान विष्णु को राम के रूप में अवतार लेना पड़ा। तीसरे जन्म में, दोनों ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म लिया, जिन्हें भगवान विष्णु के दूसरे अवतार भगवान श्री कृष्ण ने मार डाला।

Advertisement
×