Pauranik Kathayen : रावण से छुड़ाकर हनुमान ने शनिदेव को फेंका था इस जगह, बेहद चमत्कारी है मंदिर
हिंदू धर्म में श्री हनुमान जी को परम पूजनीय माना जाता है। हनुमान सिर्फ भगवान राम के परम भक्त ही नहीं बल्कि पराक्रम, बुद्धिमत्ता और करुणा के प्रतीक भी हैं। हनुमान जी से जुड़ी अनेक कथाएं रामायण, महाभारत और पुराणों में मिलती हैं। इनमें एक अत्यंत रोचक कथा "शनि देव की मुक्ति" से संबंधित है। आज हम आपको भगवान हनुमान और शनिदेव से जुड़ी एक ऐसी ही दिलचस्प कथा सुनाएंगे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब मेघनाथ का जन्म होने वाला था तब रावण उसके सभी ग्रहों की स्थिति को सही रखना चाहता था, ताकि उसका पुत्र पराक्रमी और दीर्घायु हो। रावण ने बल प्रयोग से सभी ग्रहों को सही स्थिति में रहने के लिए कहा, लेकिन शनिदेव ने उनकी बात नहीं मानी। वह अपने नियम अनुसार ही कार्य करते रहे। तब रावण ने क्रोध ने शनिदेव को चेतावनी दी, लेकिन फिर भी वह नहीं माने।
इस पर लंकापति रावण ने भगवान शनिदेव को अपने बंदीग्रह में कैद करके उल्टा लटका दिया। जब हनुमान जी माता सीता को खोजते हुए लंका पहुंचे तो उन्होनें वहां शनिदेव को देखा। भगवान हनुमान जी ने अपनी बुद्धि से शनिदेव को रावण की कैद से आजाद करवाया। मगर, कई सालों तक रावण के पैरों के नीचे दबे रहने की वजह से भगवान शनिदेव दुर्बल हो गए और उनका चलना भी मुश्किल हो गया था।
शनिदेव ने हनुमान जी से अनुरोध किया कि वे उन्हें लंका से दूर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाएं। हनुमान जी ने उन्हें मुरैना के शनि पर्वत पर फेंका, जहां आज भी प्राचीन शनिचरी मंदिर स्थित है। इसके बाद शनिदेव ने इसी स्थान पर तप किया और अपनी खोई हुई शक्तियां दोबारा प्राप्त की। शनि देव ने हनुमान जी को वचन दिया कि वह उनके भक्त को कभी भी परेशान नहीं करेंगे।
यही वजह है कि हनुमान भक्त को कभी भी साढ़े साती का दुष्परिणाम झेलना नहीं पड़ता। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर बेहद चमत्कारी है। यहां माथा टेंकने वाला की सभी परेशानियां दूर हो जाती है।