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Pauranik Kathayen : गंगा में रोजाना लाखों लोग लगा रहे आस्था की डुबकी, लेकिन कहां-कहां जाता है व्यक्ति का सारा पाप

Pauranik Kathayen : गंगा में रोजाना लाखों लोग लगा रहे आस्था की डुबकी, लेकिन कहां-कहां जाता है व्यक्ति का सारा पाप
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चंडीगढ़, 22 जनवरी (ट्रिन्यू)

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में लाखों लोग रोजाना स्नान कर रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने से उस व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं, लेकिन आप जानते हैं कि व्यक्ति के पाप आखिर जाते कहां है।

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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक ऋषि ने सोचा कि सभी लोग गंगा में पाप धोने जाते हैं। अगर सारे पाप गंगा में ही समा जाएंगे तो वह भी पापी हो जाएगी। ऐसे में उस ऋषि ने कठिन तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर देवगण ने उन्हें दर्शन दिए।

तब ऋषि ने उनसे पूछा कि जो लोग गंगा में पाप धोते हैं वह कहां जाते हैं। देवगण ने कहा कि चलो गंगा माता से ही इस बारे में पूछते हैं। ऋषि और देवगण दोनों ने ही गंगा जी से पूछा कि हे गंगे! सब लोग तुम्हारे यहां पाप धोते हैं तो तुम पापी हुई। गंगा मां ने कहा कि मैं कैसे पापी हो गई। मैं तो सभी पाप समुद्र में अर्पित कर देती हूं।

उसके बाद ऋषि और देवगण ने समुद्र देव के पास जाकर पूछा कि गंगा मां सभी पाप तुम में अर्पित कर देती है तो क्या तुम पापी हो गए? समुद्र ने कहा कि वह सभी पाप को भाप बनाकर बादल बना देता है। अब ऋषि और भगवान दोनों ने बादल से पूछा कि हे बादल! समुद्र पापों को भाप बनाकर बादल बना देते हैं तो क्या आप पापी हुए?

'जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन।'

बादलों ने कहा, मैं सभी पाप को वापिस पानी बनाकर धरती पर गिरा देता हूं, जिससे उपजा अन्न मानव खाता है। ऐसे में अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति व मानसिक अवस्था में मानव उसे ग्रहण करता है उसकी मानसिकता उसी तरह की बन जाती है। इसलिए कहा जाता है कि 'जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन।' ऐसे में भोजन हमेशा शांत मन से ग्रहण करना चाहिए। साथ ही अन्न जिस धन से खरीदा जाए वह भी श्रम यानि मेहनत का होना चाहिए।

डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।

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