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Pauranik Kahaniyan : श्रापित है सत्यव्रत की लार से बनी बिहार की यह नदी, इसके पानी को भी छूने से डरते हैं लोग

Pauranik Kahaniyan : श्रापित है सत्यव्रत की लार से बनी बिहार की यह नदी, इसके पानी को भी छूने से डरते हैं लोग
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चंडीगढ़, 19 अप्रैल (ट्रिन्यू)

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Pauranik Kahaniyan : भारत में नदियों को केवल जल स्रोत नहीं बल्कि आस्था, पौराणिकता और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी नदियों को देवी के रूप में पूजा जाता है लेकिन बिहार की एक नदी ऐसी भी है, जिसे 'श्रापित' माना जाता है। हम बात कर रहे हैं कर्मनाशा नदी की, जिसका नाम ही अपने आप में रहस्यमय और डरावना प्रतीत होता है। 'कर्मनाशा' का अर्थ होता है "कर्मों का नाश करने वाली"। यही इसका श्रापित स्वरूप दर्शाता है।

भगवान विष्णु से संबंध

कर्मनाशा नदी की उत्पत्ति के संबंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, यह नदी भगवान विष्णु के अवतार राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि महर्षि विश्वामित्र ने रोहिताश्व को स्वर्ग ले जाने के लिए उन्हें यज्ञ से पुनर्जीवित किया, लेकिन उसे यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने इस यज्ञ को अशुद्ध कर दिया, जिससे रोहिताश्व का शरीर विकृत हो गया। उसी स्थान पर कर्मनाशा नदी का जन्म हुआ। कहा जाता है कि यह नदी उसी विकृति और अपवित्रता का प्रतीक है।

सत्यव्रत की लार से बनी नदी

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हरिशचंद्र के पिता सत्यव्रत स्वर्ग जाना चाहते थे, लेकिन गुरु वशिष्ठ ने मना कर दिया। इसके बाद विश्वामित्र के श्राप से सत्यव्रत को स्वर्ग में भेजा गया। हालांकि इंद्र ने क्रोध में आकर उन्हें दोबारा धरती पर भेज दिया। उसी समय से उनकी लार धरती पर इसी नदी के रूप में बहने लगी, इसलिए इसे श्रापित माना जाने लगा।

नदी पार करने से नष्ट हो जाते हैं पुण्य

भले ही यह नदी श्रापित है, लेकिन फिर भी यह पवित्र गंगा नदी में मिल जाती है। यह नदी गंगा नदी की सहायक है और उत्तर प्रदेश व बिहार के सीमावर्ती इलाकों से होकर बहती है। 192 किलोमीटर लंबी इस नदी का 116 किलोमीटर हिस्सा उत्तर प्रदेश जबकि अन्य शेष भाग बिहार में बहता है।

इस नदी के पानी को पीने से डरते हैं लोग

जहां अन्य नदियां जीवनदायिनी मानी जाती हैं वहीं इस नदी के आसपास के लोग इसे अशुभ मानते आए हैं। प्राचीन काल में कहा जाता था कि इस नदी को पार करने से "पुण्य नष्ट" हो जाता है, इसलिए यात्री और तीर्थयात्री इससे बचते थे। यही नहीं, लोग इस नदी के पानी को पीने व भोजन बनाने के लिए भी इस्तेमाल नहीं करते।

धार्मिक अनुष्ठानों में भी प्रयोग नहीं होता इसका जल

चूंकि कर्मनाशा नदी का जल पवित्र नहीं माना जाता इसलिए लोग इसका जल धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयोग नहीं करते। कई गांवों में इसे पार करने से पहले पूजा की जाती है, ताकि 'कर्म' की हानि न हो। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस नदी को पार करने से अपशगुन होगा। यहां तक कि कई बार इस नदी पर पुल बनाने में भी बाधाएं आईं।

आज भले ही विज्ञान और आधुनिकता ने बहुत सी पुरानी मान्यताओं को चुनौती दी है, लेकिन कर्मनाशा नदी को लेकर लोगों की श्रद्धा और भय आज भी जीवित है। स्थानीय लोग इस नदी को गंभीरता से लेते हैं और कई लोग आज भी इसका जल ग्रहण करने या इसमें स्नान करने से परहेज करते हैं।

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