महाराज छत्रसाल स्वयं नगर में घूम कर प्रजा से उनका कष्ट पूछते थे। ‘जिस राजा के राज्य में प्रजा के लोग कष्ट पाते हैं, वह नरेश नरकगामी होता है।’ इस कथन को छत्रसाल ने अपना आदर्श बना लिया था। बलिष्ठ शरीर, चौड़ा माथा, विशाल नेत्र आजानुबाहु महाराज को देखकर एक स्त्री उन पर मोहित हो गई। स्त्री महाराज के पास आई, उसने हाथ जोड़कर विनती की कि मैं बहुत दुखियारी हूं। ‘आपको क्या कष्ट है देवी’, महाराज ने पूछा। स्त्री ने बताया, ‘श्रीमान, मेरा कष्ट दूर करने का वचन दें तो प्रार्थना करूं।’ सरल स्वभावी महाराज ने कह दिया, ‘यदि संभव होगा तो आपका कष्ट जरूर दूर कर दूंगा।’ नारी ने कहा, ‘मैं नि:संतान हूं। मुझे आप जैसा पुत्र चाहिए।’ महाराज छत्रसाल पल भर तो स्तब्ध रह गए, मगर जल्द ही उन्होंने उस नारी के चरणों में शीश झुकाते हुए कहा, ‘आपको मेरे जैसा पुत्र चाहिए, इसलिए यह छत्रसाल ही आपका पुत्र है।’ छत्रसाल ने उसे राजमाता की भांति सत्कार दिया। प्रस्तुति : मुकेश शर्मा