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प्रेम का प्रसाद

एकदा

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वृंदावन के संत, माधवदास, पैदल चलकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन को निकले। मन में बस प्रभु के दर्शन की आशा थी। जब वे ओडिशा के रेमुणा पहुंचे, तो उन्होंने गोपीनाथ जी का भव्य मंदिर देखा और सोचा, ‘आज यहीं दर्शन कर लूं, शायद प्रसाद मिल जाए।’ मंदिर में रोज सात कसोरों में खीर चढ़ाई जाती थी, जिसे भक्तों में बांट दिया जाता था। माधवदास भी लाइन में लगे, लेकिन जब उनका नंबर आया, तो खीर खत्म हो चुकी थी। वे बाहर पेड़ के नीचे बैठ गए और बोले, ‘प्रभु, आप अन्नदाता हैं, द्वार पर आकर भी भूखे लौटूं? यह आपकी लीला है?’ रात को पुजारी को स्वप्न में भगवान गोपीनाथ प्रकट हुए और कहने लगे, ‘उठो, मेरा एक भक्त भूखा है, पेड़ के नीचे बैठा है, उसकी खातिर खीर लाओ।’ पुजारी ने कहा, ‘सारा प्रसाद तो बांट चुका हूं।’ भगवान मुस्कुराए, ‘सात कसोरों में से एक मैंने मंदिर में रखा है।’ पुजारी दौड़ते हुए पहुंचे, और वाकई एक गर्म और ताजा खीर से भरा कसोरा वहां था। वे भावुक होकर खीर लेकर माधवदास के पास गए और बोले, ‘प्रभु ने आपके लिए खीर भेजी है।’ माधवदास ने आश्चर्य से पूछा, ‘खीर तो खत्म हो गई थी, यह कहां से आई?’ पुजारी ने कहा, ‘आज प्रभु ने खीर चुरा ली थी, आपके प्रेम के लिए।’ माधवदास की आंखें भर आईं, उन्होंने खीर को प्रसाद की तरह सिर पर रखा और नाचने लगे। ‘मेरे भगवान, मेरे लिए चोर बन गए, आप तो सच्चे खीर चौरा हो।’ तब से रेमुणा का वह मंदिर ‘खीर चौरा गोपीनाथ मंदिर’ कहलाया, और आज भी वहां सात कसाेरे चढ़ते हैं, जिनमें से एक भक्तों के प्रेम का प्रतीक है।

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