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सिर्फ बाहरी रोशनी ही नहीं, भीतरी उजास का भी संदेश

दीपावली आज

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दीपावली केवल दीपों और सजावट का पर्व नहीं, बल्कि अंधकार से प्रकाश और अज्ञान से ज्ञान की यात्रा का प्रतीक है। यह पंच पर्वों की शृंखला आत्मशुद्धि, आरोग्य, समृद्धि, कृतज्ञता और प्रेम के भावों को जोड़ती है। भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ा यह उत्सव मनुष्य के भीतर के उजास, सदाचार और सामाजिक सद्भाव को जगाने का प्रेरक संदेश देता है।

दीपावली का नाम लेते ही आंखों के सामने रोशन दीपोत्सव की लड़ी का उजास फैल जाता है। दीपों की पंक्तियां, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां और परिवार का हर्षोल्लास झिलमिलाने लगता है। लेकिन यदि हम इस पर्व के गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक ‘पंच पर्व’ की पड़ताल करें, तो पाते हैं कि दीपावली सिर्फ एक दिन की लक्ष्मी-गणेश पूजा का पर्व नहीं है, बल्कि यह पांच धार्मिक अनुष्ठानों की एक अनुषांगिक श्रृंखला है, जिसे भारतीय संस्कृति ने *पंच पर्व* कहा है। दीपावली के इन पांच दिनों में शरीर, मन, परिवार और समाज — सबकी शुद्धि और आत्मिक व आध्यात्मिक उन्नति का भाव समाहित होता है।

अंधकार से प्रकाश की यात्रा

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‘दीपावली’ शब्द ‘दीप’ और ‘अवली’ (पंक्ति) से बना है, जिसका अर्थ है रोशन दीयों की कतार। हाल के वर्षों में दीपावली शब्द का उच्चारण करते ही अयोध्या में दीपों की अनंत कतार के दृश्य आंखों के सामने घूम जाते हैं। लेकिन दीपावली केवल दीयों की कतार या बाहरी प्रकाश का उत्सव नहीं, बल्कि यह इंसान की आंतरिक ज्योति के जागरण का पर्व है। जब जीवन में अंधकार, अज्ञान, आलस्य, ईर्ष्या और लोभ का वास होता है, तब दीप का जलाना इस बात का संकल्प होता है कि हम अपने भीतर ज्ञान, संयम और सदाचार की लौ प्रज्वलित करेंगे।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे और अयोध्यावासियों ने इस खुशी में घी के दीये जलाए थे। लेकिन दिवाली से जुड़ी कहानियां और सांस्कृतिक विरासतें यहीं समाप्त नहीं होतीं। वास्तव में दीपावली भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह का प्रतीक पर्व भी है और यही दिन जैन परंपरा में भगवान महावीर के निर्वाण का दिन माना जाता है। इसलिए यह सत्य, धर्म और आत्मज्ञान का उत्सव भी है। दीपावली के साथ उल्लास, प्रकाश और हर्ष की अनेकानेक कहानियां जुड़ी हैं — इसलिए यह पर्व जगमग क्यों न हो!

पंच पर्वों की लड़ी

दीपावली का पर्व आत्मशुद्धि से समृद्धि तक वास्तव में ‘पंच पर्वों’ की लड़ी है, जिसकी पहली कड़ी ‘धनतेरस’है।

स्वास्थ्य और शुद्धता का पर्व

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाने वाला धनतेरस का पर्व भगवान धन्वंतरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय मान्यता के अनुसार ‘स्वास्थ्य ही पहला धन’ है। इसलिए दीपावली पर सबसे पहले स्वास्थ्य रूपी धन के उल्लास का जश्न मनाया जाता है। इस दिन लोग घर की सफाई करने के बाद नई वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। नई वस्तुओं का अर्थ केवल सोना-चांदी नहीं, बल्कि जीवन में किसी भी महत्वपूर्ण चीज की प्राप्ति हो सकती है। मूलतः यह दिन आरोग्य और आत्मबल का प्रतीक है।

अंधकार के शमन का दिन

धनतेरस के अगले दिन को हमारे भीतर के अंधकार या नकारात्मकताओं के शमन के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसे ‘छोटी दिवाली’ या ‘रूप चतुर्दशी’ भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। यह घटना इस बात की प्रतीक है कि हर व्यक्ति को अपने भीतर के क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या जैसे ‘नरकासुर’ का वध करना चाहिए। इस दिन स्नान, सुगंध, दीपदान और स्वच्छता का विशेष महत्व है। जैन और बौद्ध धर्मों में भी रूप चतुर्दशी आत्मअनुशासन और शुद्धता का पर्व मानी जाती है।

पूजन का शुभ दिन

कार्तिक अमावस्या की घोर अंधेरी रात दीपों से जगमगाती दीपावली की रात होती है। इस दिन अंधकार को भगाने के लिए दीप जलाना आत्मबल और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। इस दिन भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और माता लक्ष्मी को शुभ-समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी मानकर पूजा की जाती है। भगवान गणेश बुद्धि और विवेक के प्रतीक हैं, जबकि मां लक्ष्मी श्रम और पवित्रता से अर्जित धन की प्रतीक हैं। इन दोनों की पूजा से धन और बुद्धि दोनों की संतुलित समृद्धि प्राप्त होती है — यही दीपावली की प्रेरणा और सीख है।

प्रकृति के प्रति कृतज्ञता

दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ‘गोवर्धन पूजा’ या ‘अन्नकूट उत्सव’ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र पूजा के विरोध से जुड़ा है। इसका गूढ़ अर्थ यह है कि मनुष्य को देवताओं से पहले प्रकृति और पर्यावरण की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यही हमारे सच्चे पालनहार हैं। इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों में गौ पूजन और अन्नकूट प्रसाद का वितरण किया जाता है। यह पर्व हमारी कृषि परंपरा और पर्यावरणीय समृद्धि का प्रतीक है।

स्नेह और पारिवारिक एकता का पर्व

दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला का अंतिम पर्व ‘भाई दूज’ है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को बहनें अपने भाइयों के कल्याण की कामना करती हैं। यह महज एक पारिवारिक रस्म नहीं, बल्कि रक्षात्मक प्रेम और सामाजिक एकता का प्रतीक है। इस दिन का संदेश है कि संबंधों की पवित्रता ही समाज की सबसे बड़ी पूंजी है।

इस प्रकार, पंच पर्वों की इस लड़ी का सार यह है कि दीपावली अपने भीतर की अंधेरी प्रवृत्तियों को मिटाकर ज्ञान, चेतना और समृद्धि का प्रकाश फैलाने का पर्व है। दीपावली के ये पंच पर्व आत्मशुद्धि, कृतज्ञता, परिश्रम, प्रेम और सामाजिक सद्भाव के मार्ग पर ले जाते हैं। इसलिए दीपावली का पर्व केवल गणेश-लक्ष्मी पूजन तक सीमित नहीं, बल्कि यह हमारे व्यापक जीवनदर्शन को समृद्ध करने वाला पर्व है।   इ.रि.सें.

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