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Navratri 3rd Day : राक्षसों का संहार करने के लिए हुए मां चंद्रघंटा का जन्म, पढ़िए पौराणिक कथा

Navratri 3rd Day : राक्षसों का संहार करने के लिए हुए मां चंद्रघंटा का जन्म, पढ़िए पौराणिक कथा
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चंडीगढ़, 31 मार्च (ट्रिन्यू)

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की अराधना की जाती है। मां को देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक माना जाता है। उनका नाम सिर पर स्थित चंद्रमा के आकार के घंटे (घंटिका) से उत्पन्न हुआ है। इनका रूप अत्यंत भव्य और डरावना होता है। वे राक्षसों और असुरों का संहार करने के लिए जानी जाती हैं। उनका स्वरूप और उपासना विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान प्रमुख होती है।

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देवी चंद्रघंटा का स्वरूप

देवी चंद्रघंटा का रूप अत्यंत सुंदर और सशक्त है। उनका रूप घमंड और क्रोध से परे होता है। उनका चेहरा शांत और सौम्य है, जैसे कि चंद्रमा की चांदनी रात में शांति का आभास होता है। उनके माथे पर स्थित चंद्रमा के आकार का घंटा, उनके शांति और शक्ति के संयोजन का प्रतीक है। देवी चंद्रघंटा को भगवान शिव की शक्ति के रूप में पूजा जाता है।

चंद्रघंटा के 4 हाथ होते हैं, जिनमें से एक में वे एक घंटा पकड़े हुए हैं, जो उनके नाम का प्रतीक है। दूसरे हाथ में एक धनुष और तीसरे हाथ में बाण होते हैं, जो युद्ध और संघर्ष के समय उनकी वीरता और साहस का प्रतीक हैं। चौथे हाथ में देवी एक त्रिशूल पकड़े हुए हैं, जो शक्ति, नियंत्रण और धैर्य का प्रतीक है। उनके वाहन सिंह का प्रतीक है जो साहस और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

माता चंद्रघंटा का जन्म और महत्व

पौराणिक कहानी के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया था। तब असुरों के राजा महिषासुर ने देवताओं को पराजित कर दिया और स्वर्ग पर अपना शासन कर लिया। देवताओं की स्थिति अत्यधिक दयनीय हो गई। तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनकी मदद की प्रार्थना की। भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि वे उनके साथ मिलकर राक्षसों का संहार करें।

देवी पार्वती ने भगवान शिव के आदेश का पालन करते हुए, अपने शरीर से एक बहुत ही भव्य रूप लिया और उसे चंद्रघंटा नाम दिया। उनका सिर पर चंद्रमा जैसा घंटा था, जिससे उनका नाम "चंद्रघंटा"पड़ा। इस रूप में देवी का रूप अत्यधिक भव्य और युद्ध के लिए उपयुक्त था। उनके साथ उनका वाहन सिंह था और उन्होंने कई प्रकार के शस्त्रों से राक्षसों को पराजित किया।

माता चंद्रघंटा की पूजा और महत्व

नवरात्रि के तीसरे दिन, माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से उनकी शांति और शक्ति को प्राप्त करने के लिए विधिपूर्वक मंत्रोच्चारण किए जाते हैं। भक्त देवी से बुराईयों से मुक्ति, मानसिक शांति और भय से उन्नति की कामना करते हैं। माता चंद्रघंटा की पूजा से न केवल भूत-प्रेत और राक्षसों का भय समाप्त होता है, बल्कि यह पूजा मानसिक शक्ति और शांति प्रदान करने वाली मानी जाती है।

चंद्रघंटा स्वरूप का स्तोत्र पाठ

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।

अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।

धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥

नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।

सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

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