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मां की सीख

एकदा
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मिसाइल मैन कलाम का बचपन अपनी माता की उदारता तथा पिता के अनुशासन को देखते हुए बीता। बालक कलाम की अम्मी गमले में फूलों के पौधे लगाती थी। फूल उग जाते थे तो आसमान की तरफ देखकर अल्लाह की कुदरत और मेहर का शुकराना अदा करती थी। यह देखकर बालक कलाम हैरान हो जाते। एक बार वह पूछ बैठे कि अम्मी एक सवाल है जेहन में। आप ही निराई और गुड़ाई करती हो और मैंने पाठशाला में यह सीखा है कि बीज से ही पौधा बनता है। फिर आप रोजाना सींचती हो तो इसमें फूल खिलते हैं। तब भी आप आसमान की तरफ दुआ में हाथ उठा देती हो। यह मुझे समझ में नहीं आता है। वो इसलिए कलाम कि मुझमें कहीं गुरूर न पैदा हो। मैं इतराने न लगूं। इसलिए मैं उस परवरदिगार का शुकराना अदा करती हूं। कलाम ने अपनी आखिरी सांस तक अम्मी की यह सीख दिल में सहेज कर रखी। इसीलिए वह जीवन में इतने ऊंचे उठे।

प्रस्तुति : पूनम पांडे

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