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कार्तिकेय व नटराज की मूर्तियों के चमत्कारिक प्रसंग

तिरुचेंदूर मंदिर

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तिरुचेंदूर का प्रसिद्ध सुब्रमण्यम मंदिर, 9वीं शताब्दी का भव्य कार्तिकेय मंदिर, भक्तों का महत्वपूर्ण स्थल है। इतिहास में यह मंदिर पुर्तगाली और ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में रहा। मूर्तियों की चोरी, समुद्र में गिरना और बाद में पुनः प्राप्ति की कहानी यहां की महानता को दर्शाती है। आदि शंकराचार्य ने भी यहां चमत्कारी भस्म से उपचार का उल्लेख किया।

दक्षिण भारत में तिरुचेंदूर में बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित 9वीं शताब्दी के प्रसिद्ध तटीय भव्य कार्तिकेय मंदिर करोड़ों भक्तों के आकर्षण का केन्द्र है। कार्तिकेय मंदिर के संबंध में एक ऐतिहासिक घटना घटी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में पुर्तगाली सेना के साथ युद्ध के दौरान 1646-48 के दौरान दो वर्षों के लिए मंदिर पर कब्जा कर लिया था।

डच लोग कार्तिकेय और नटराज की प्रमुख मूर्तियों को यह सोचकर मंदिर से ले गए कि वे सोने की बनी हैं। मूर्तियों को पिघलाने का उनका प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुआ। जैसे ही वे मूर्तियों को समुद्र के रास्ते ले गए, एक भयंकर तूफान ने उनके जहाज को हिला दिया, इसलिए उन्होंने मूर्तियों को पानी में फेंक दिया।

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मूर्तियों का नुकसान क्षेत्र के नाइक शासकों के लिए असहनीय था, जिसके कारण स्थानीय प्रशासक ने प्रतिकृतियां पंचलोहा (पांच धातुओं) में तैयार करने का आदेश दिया था। जब मूल प्रतिमाओं की प्रतिकृतियां बन रही थीं तभी प्रशासक को एक दिन सपना आया जहां एक दिव्य आवाज ने उसे समुद्र में एक ऐसे स्थान पर मूल प्रतिमाओं की खोज करने का आदेश दिया, जहां एक नीबू का फल तैरता हुआ पाया जाएगा और वह स्थान एक गरुड़ पक्षी (विष्णु का वाहन) द्वारा ऊपर की ओर चक्कर लगाता हुआ चिह्नित किया गया।

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प्रतिमाओं को खोजने के कार्य के लिये भेजे गए लोगों ने उस स्थान का पता लगा लिया और वास्तव में उन्हें पानी के नीचे मूल मूर्तियां मिलीं, जिन्हें वर्ष 1653 में मंदिर में पुनः प्रतिष्ठित किया गया। उपरोक्त घटनाओं की गवाही देने के लिए मंदिर में शिलालेख भी हैं, जिन्हें 1785 में एक फ्रांस इतिहासकार ने भी दर्ज किया था।

तिरुचेंदूर का सुब्रमण्यम मंदिर ऐसे कई चमत्कारों से जुड़ा है। मंदिर का दर्शन करने वाले आदि शंकराचार्य ने मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाए गए भस्म से विभिन्न बीमारियों के लिए चमत्कारी इलाज का दावा किया गया है। चित्र लेखक

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