उत्तर प्रदेश के औरैया जनपद स्थित देवकली मंदिर अपने अनोखे शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है, जो हर शिवरात्रि पर एक जौ के बराबर बढ़ता है। 11वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जयचंद द्वारा अपनी मुंहबोली बहन देवकला के नाम पर स्थापित यह मंदिर आस्था और रहस्य का प्रतीक है।
उत्तर प्रदेश के औरैया जनपद में स्थित शिव मंदिर अपने अनोखे शिवलिंग के कारण भक्तों के लिए हर्ष और वैज्ञानिक दृष्टि से कौतूहल का कारण बन गया है। यमुना नदी के किनारे स्थित देवकली मंदिर में स्थापित शिवलिंग हर साल एक जौ के बराबर बढ़ता है, विशेष रूप से शिवरात्रि के दिन। यह अद्भुत घटना मंदिर के प्रति श्रद्धा और उत्सुकता को और भी बढ़ा देती है।
मंदिर का इतिहास
देवकली मंदिर का इतिहास 11वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। कन्नौज के राजा जयचंद ने अपनी मुंहबोली बहन देवकला के नाम पर इस मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर विश्व का पहला शिव मंदिर है जो स्त्री नाम से जाना जाता है। मंदिर के पुजारी के अनुसार, राजा जयचंद ने 1125 ई. में अपनी बहन देवकला की शादी जालौन के राजा विशोख देव से करवाई थी और उसे 145 गांव तोहफे के रूप में दिए थे। देवकला की आस्था को देखते हुए इस शिवमंदिर को देवकली नाम दिया गया था। लोककथा के अनुसार, देवकला जब ससुराल जा रही थीं, तो रात के समय मंदिर में विश्राम करती थीं। मंदिर क्षेत्र में पहले 52 कुएं हुआ करते थे, जिनमें से कई आज भी मौजूद हैं।
शिवलिंग का रहस्य
मंदिर में स्थापित शिवलिंग को लेकर एक विशेष मान्यता है। लोक मान्यता के अनुसार, यह शिवलिंग द्वापर युग में स्वयं प्रकट हुआ था। हर शिवरात्रि पर इसका आकार एक जौ के बराबर बढ़ जाता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि उनके गुरु महाराज ने यह प्रमाणित किया है कि प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर शिवलिंग एक जौ के बराबर बढ़ता है। इसके अलावा, शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल कहां जाता है, इसका कोई स्पष्ट पता नहीं चल पाया है। यह जल भूमिगत हो जाता है और कहीं न कहीं समा जाता है।
आस्था और मान्यता
देवकली मंदिर में शिव भक्तों का तांता हमेशा लगा रहता है। कई श्रद्धालु यहां ध्यान लगाकर बैठते हैं और अपनी मनोकामनाओं के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि भोलेनाथ के सामने सच्चे मन से जो भी अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी इच्छा पूरी होती है। चित्र लेखिका

