Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

पारिवारिक सामंजस्य का मंत्र

एकदा
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

एक बार संत वल्लभाचार्यजी सत्संग में परिवार और पारिवारिक जीवन में सामंजस्य की महत्ता पर उपदेश दे रहे थे। उन्होंने सहनशीलता पर ज़ोर देते हुए कहा कि पारिवारिक जीवन में धैर्य और समझदारी बहुत आवश्यक है। उसी समय एक श्रोता ने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘गुरुदेव, आपके विचार बहुत उत्तम हैं, परंतु जब अपने ही सगे भाई-बहन मतलबी और स्वार्थी हो जाएं, तब सहनशीलता कैसे रखी जाए?’ यह सुनकर वल्लभाचार्यजी मुस्कराए और बोले, ‘बेटा, जब तक तुम स्वयं अपने स्वार्थ से ऊपर नहीं उठोगे, तब तक दूसरों का मतलबीपन भी तुम्हें चुभता रहेगा। रिश्ते निभाने की शुरुआत हमें खुद से करनी होती है। देखो, रिश्ते चाहे जैसे भी हों, कितने भी कड़वे या कठिन क्यों न हो जाएं— उन्हें तोड़ना कभी ठीक नहीं। क्योंकि पानी चाहे जितना भी गंदा क्यों न हो, अगर आग लगी हो, तो वही गंदा पानी भी आग बुझा सकता है।’ उनकी यह बात श्रोताओं के हृदय को छू गई। जो लोग अपने संबंधों को लेकर दुखी थे, वे भी आत्मचिंतन करने लगे। सभी ने अनुभव किया कि जीवन में सत्संग ही वह दर्पण है, जो हमें खुद को देखने और सुधारने की प्रेरणा देता है। इसलिए कहा गया है–सत्संग अनमोल होता है। वह जीवन की दिशा और दृष्टि दोनों बदल सकता है।

Advertisement
Advertisement
×