आगरा के किले में केशव नामक दस साल का बालक अपने पिता के साथ पत्थर पर नक्काशी का काम कर रहा था। उसके पिता किसी काम से गये तो अचानक बादशाह अकबर का बालक केशव के पास आना हुआ। बादशाह ने मजाक किया, ‘क्या मुझे भी नक्काशी सिखाओगे, केशव?’ केशव ने कहा, ‘हां, यह लो हथौड़ा, छेनी और बनाओ नक्काशी।’ अकबर ने हथौड़ा लिया और पत्थर पर जोर से मारा तो बालक चिल्लाया, ‘हथौड़ा धीरे चलायें, इससे किरचें ज्यादा बनेंगी। पत्थर पर न तो नक्काशी बनेगी और पत्थर भी टूट जायेगा।’ बालक के ये शब्द अकबर के लिए एक सीख ही बन गये। उसके जेहन में आया कि प्रजा रूपी पत्थर पर नियम रूपी हथौड़े से नक्काशी बनानी चाहिए, न कि प्रजा रूपी पत्थर टूटना चाहिए और न किरच रूपी किरकिरी प्रजा को उत्पीड़न दे।’ इतने में केशव का पिता आया और बोला, ‘मूर्ख! ये बादशाह अकबर हैं, सलाम कर।’ केशव के पिता ने क्षमा मांगते हुए कहा, ‘हुजूर, बालक है यह।’ ‘माफ़ी नहीं, इस बच्चे ने तो मुझे यह क्षणभर में ही सिखा दिया कि राजा को प्रजा के साथ व्यवहार कैसे करना है।’ अकबर ने कहा।
प्रस्तुति : बनीसिंह जांगड़ा