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सिकंदर को सबक

एकदा

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एक बार सिकंदर ने एक नगर को चारों ओर से घेर लिया था। जब उसे भूख लगी, तो उसने एक मकान का द्वार खटखटाया। द्वार एक बुढ़िया ने खोला। सैनिक वेश में खड़े व्यक्ति को देखकर बुढ़िया समझ गई कि यह सिकंदर ही है। सिकंदर ने कहा, ‘मां, मुझे भूख लगी है। कुछ खाने को मिलेगा?’ ‘अवश्य मिलेगा, बेटा,’ कहकर बुढ़िया घर के अंदर चली गई और कपड़े से ढकी एक थाली लेकर लौटी। सिकंदर ने थाली से कपड़ा हटाया तो उसमें भोजन की जगह सोने-चांदी के जेवरात थे। सिकंदर बोला, ‘मां, मैंने खाना मांगा था, सोना-चांदी नहीं। क्या ये मेरी भूख मिटा सकते हैं?’ यह सुनकर बुढ़िया ने निर्भीकता से कहा, ‘बेटा, अगर तुम्हारी भूख रोटियों से मिटती, तो तुम अपना घर-परिवार और देश छोड़कर यहां संपत्ति लूटने क्यों आते? तुम मेरे जीवनभर की कमाई ले जाओ, पर मेरे नगर पर चढ़ाई मत करो।’ बुढ़िया के शब्दों ने सिकंदर को झकझोर दिया। वह उनके चरणों में झुक गया। फिर बुढ़िया ने प्रेम से सिकंदर को भोजन कराया। सिकंदर उस नगर को जीते बिना ही वापस लौट गया।

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