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चूक की सीख

एकदा
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बात सन‍् 1948 की है। अहमदाबाद की महात्मा गांधी विज्ञान अन्वेषणशाला में कुछ विद्यार्थी भौतिकी का एक महत्वपूर्ण प्रयोग कर रहे थे। यह प्रयोगशाला हाल ही में देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई द्वारा स्थापित की गई थी। प्रयोग करते समय विद्यार्थियों से एक छोटी-सी चूक हो गई। अधिक मात्रा में विद्युत धारा प्रवाहित हो जाने के कारण एक बहुमूल्य यंत्र जल गया। वह यंत्र भारत में उपलब्ध नहीं था और विदेश से मंगवाया गया था। यह सोचकर विद्यार्थी बेहद घबरा गए और परेशान हो उठे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस बारे में डॉ. साराभाई को कैसे बताएं। विद्यार्थी आपस में विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि तभी उन्हें डॉ. साराभाई के कदमों की आहट सुनाई दी। एक विद्यार्थी ने कहा, ‘वे आ रहे हैं, अब उन्हें बता ही देना चाहिए।’ लेकिन दूसरा छात्र घबराकर बोला, ‘नहीं, तुम ही बताओ, मुझसे नहीं होगा!’ डॉ. साराभाई ने विद्यार्थियों को आपस में धीमे-धीमे बातें करते हुए देख लिया। उन्होंने मुस्कराकर पूछा, ‘क्या बात है? कोई समस्या है क्या?’ तब एक छात्र ने डरते-डरते सारी घटना बता दी। विद्यार्थियों को डर था कि उन्हें डांट पड़ेगी या उन्हें प्रयोग से हटा दिया जाएगा। लेकिन डॉ. साराभाई ने शांत और स्नेहपूर्ण मुस्कान के साथ कहा, ‘अरे, बस इतनी-सी बात? परेशान मत हो। वैज्ञानिक अध्ययन और प्रयोगों में ऐसी गलतियां होती रहती हैं। विद्यार्थी तो इन्हीं गलतियों से सीखते हैं। अगली बार प्रयोग से पहले सभी उपकरणों की अच्छी तरह से जांच कर लेना।’ डॉ. साराभाई का यह उत्तर सुनकर सभी विद्यार्थी गहरे सम्मान और श्रद्धा से भर उठे।

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