एकदा
संत तिरुवल्लुवर अपने प्रवचनों में सदा कहा करते थे कि हमें किसी को हीन दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। अच्छों से ही नहीं, हमें बुरी से बुरी चीजों या व्यक्तियों से भी अच्छी सीख या प्रेरणा मिल सकती है, इसलिए हमें अपनी नज़र पारखी की तरह रखनी चाहिए। तभी एक भक्त उठा और बोला—प्रभु, शायद आपका कहा सत्य हो। मगर आज मैंने ऐसा व्यक्ति देखा जिससे न कोई प्रेरणा मिलती है और न उससे कुछ सीखा जा सकता है। संत ने प्रश्न किया—तुमने उसे कहां और किन हालात में देखा था। प्रभु, वह एक शराबी था और गांव के गंदे नाले में पड़ा हुआ था। आप ही बताइए, ऐसा व्यक्ति किस प्रकार किसी का प्रेरणास्रोत हो सकता है। संत ने पूछा—पुत्र, क्या तुम उसके जैसा बनना चाहोगे। यदि नहीं, तो क्या वह सारे बुरे कर्म करोगे जो उसे बुरा बनाकर पूरे गांव में उसे बदनाम करते हैं। अगर तुम्हारा जवाब नहीं में है तो यही तुम्हारे सवाल का जवाब भी है। उसकी दुर्दशा से भी यही सीखा जा सकता है कि वर्तमान में कोई ऐसा कार्य ना करें जो भविष्य में हमारी दुर्गति का कारण बने। प्रस्तुति : मुकेश कुमार जैन