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संकट हरने वाली  लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी : 29 जनवरी
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राजेंद्र कुमार शर्मा

सनातन धर्म की मजबूत नींव पूरे वर्ष मनाए जाने वाले विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और पर्वों पर रखी गई है। जो प्रेम, भक्ति, भाईचारे और सौहार्द का संदेश देते हैं। वैसे तो पूरे वर्ष ही धार्मिक पर्वों और अनुष्ठानों का उत्साह रहता है पर इनमें संकष्टी चतुर्थी का विशेष स्थान है, जो कि भगवान श्रीगणेश की साधना-आराधना को समर्पित होता है। गणपति जी को हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य माना गया है, जो सारे संकट हर लेते हैं। पूरे साल में 13 संकष्टी चतुर्थी के व्रत होते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है।

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व्रत की महिमा

संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं। इतना ही नहीं संकष्टी चतुर्थी का पूजा से घर में शांति बनी रहती है। घर की सारी परेशानियां दूर होती हैं। गणेश जी भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस दिन चंद्रमा को देखना भी शुभ माना जाता है। सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है। दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में संकष्टी चतुर्थी को गणेश संकटहरा या संकटहरा चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ संकट हरने वाला है।

लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी पूजा

इस वर्ष के माघ, कृष्ण पक्ष चतुर्थी (लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी) 29 जनवरी, सोमवार को है। जिसके प्रारंभ होने का समय प्रातः 6:10 तथा समापन 30 जनवरी को प्रातः 8:54 पर होगा।

पूजन विधि

नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रती को पूरे दिन का उपवास रखना चाहिए। कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत नियमानुसार ही संपन्न करना चाहिए, तभी इसका पूरा लाभ मिलता है।

व्रती प्रातः धूप, दीप, नैवेद्य के साथ भगवान श्रीगणेश की पूजा करता है। गणपति को भोग-प्रसाद के रूप में तिल, गुड़, लड्डू, दूर्वा, चंदन चढ़ाया जाता है। उसके बाद वंदन और मंत्रों का जाप के साथ भगवान गणेश की कथा का पाठ किया जाता है। संध्याकाल गणेश जी की पूजा के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न करें।

व्रत में क्या सेवन करें

संकष्टी चतुर्थी का व्रत काफी कठिन होता है। इसमें किसी प्रकार के अनाज का सेवन न करें। संकष्टी चतुर्थी के दिन फल, कंद-मूल खाया जा सकता है। शाम को चन्द्रमा के दर्शन कर अर्घ्य देने के बाद आप उपवास तोड़ सकते हैं। इस व्रत को तोड़ने के बाद शाम को आप साबूदाने की खिचड़ी, आलू और इससे बने खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं।

माना जाता है कि इस सर्वोत्तम व्रत के प्रभाव से व्रती की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। जो भी लोग इस पावन व्रत को करते हैं उन्हें पूर्ण सफलता मिलती है। वे पृथ्वीलोक के समस्त सुखों का भोग कर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। गणपति बप्पा की पूजा करने से यश, धन, वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

व्रत-पर्व

29 जनवरी : भद्रा (सुबह 6.11 तक), श्री गणेश संकष्ट चतुर्थी व्रत, गौरी-वक्रतुण्ड चतुर्थी।

1 फरवरी : भद्रा (दोपहर 2.04 से रात 3.04 तक)।

- सत्यव्रत बेंजवाल

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