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कर्म के उजास से ही प्रसन्न होती हैं लक्ष्मी

दीपावली के दिन माता लक्ष्मी का पूजन सुख, समृद्धि और वैभव की कामना से किया जाता है। माता लक्ष्मी उन्हीं के पास निवास करती हैं जो सत्यवादी, धर्मपरायण, कर्तव्यनिष्ठ और स्वच्छता में विश्वास रखते हैं। उनका आशीर्वाद स्थायी समृद्धि और...

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दीपावली के दिन माता लक्ष्मी का पूजन सुख, समृद्धि और वैभव की कामना से किया जाता है। माता लक्ष्मी उन्हीं के पास निवास करती हैं जो सत्यवादी, धर्मपरायण, कर्तव्यनिष्ठ और स्वच्छता में विश्वास रखते हैं। उनका आशीर्वाद स्थायी समृद्धि और खुशहाली लेकर आता है।

सुख, समृद्धि, वैभव की प्राप्ति की अभिलाषा लेकर हिंदू धर्मावलंबी दीपावली के दिन माता लक्ष्मी का पूजन करते हैं। आतिशबाजी, पटाखे, मिठाई, विद्युत प्रकाश कर दीपावली की रात्रि को आलोकित करते हैं। मन में भावना होती है माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने की, धनवान बनने की और दरिद्रता दूर करने की। क्या माता लक्ष्मी को एक दिन की पूजा, आराधना, जगमगाहट से प्रसन्न किया जा सकता है? इन सब सवालों का जवाब स्वयं माता लक्ष्मी जी ने दिया है।

एक बार रुक्मिणी जी ने माता लक्ष्मी जी से पूछा–आप कहां विराजमान रहती हैं एवं कहां नहीं? माता ने अपना निवास स्थान बताते हुए कहा–‘मैं सुंदर, मधुरभाषी, चतुर, कर्तव्य में लीन, क्रोधहीन, भगवत्परायण, कृतज्ञ, जितेंद्रिय और बलशाली पुरुष के पास बनी रहती हूं। मैं स्वधर्म का आचरण करने वाले, धर्म की मर्यादा जानने वाले, दीन-दुखियों की सेवा करने वाले, आत्मविश्वासी, क्षमाशील और समर्थ पुरुषों के साथ रहती हूं।

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जो स्त्रियां पति परायणा, सत्यवादी, निष्कपट, सरल स्वभाव संपन्न तथा सत्याचरण परायणा हैं, वे मुझे पसंद हैं। सदा हंसमुख रहने वाली, सौभाग्ययुक्त, गुणवती, कल्याणकामिनी स्त्रियों के पास रहना पसंद करती हूं। नीति मार्ग पर चलने वाले, पुण्यकर्म करने वाले, दानशील गृहस्थों का मैं पुत्रों की तरह पालन करती हूं।’

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लक्ष्मी जी कहती हैं–‘मिथ्यावादी, धर्मग्रंथों को कभी न देखने वाला, पराक्रम से हीन, सत्य से हीन, धरोहर छीनने वाले, विश्वासघाती, कृतघ्न पुरुष के घर नहीं जाती। चिंताग्रस्त, भय में सदा डूबे हुए, पातकी, कर्जदार, अत्यंत कंजूस के घर भी नहीं जाती। दीक्षाहीन, शोकग्रस्त, मंदबुद्धि, विलासी के घर कभी नहीं जाती। कटुभाषी, कलहप्रिय, भगवान की पूजा न करने वाले के यहां भी नहीं ठहरती। अकर्मण्य, आलसी, नास्तिक, उपकार को भुला देने वाले, आपसी बात पर स्थिर न रहने वाले, चोर, ईर्ष्या, द्वेष, डाह रखने वाले पुरुषों के यहां कभी नहीं रहती। पुरुषार्थहीन, संतोषी, तेजहीन, बलहीन और आत्मगौरव से हीन पुरुष के पास भी कभी नहीं ठहरती।’ गंदे वस्त्र पहनने वाले, शरीर को स्वच्छ न रखने वाले, सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी जी सदा के लिए त्याग देती हैं।

तात्पर्य यह कि धन-संपदा, ऐश्वर्य उन स्वच्छ, सक्रिय और उद्योगी व्यक्तियों के पास रहते हैं जो कर्तव्यशील, आलस्य रहित हैं। धर्मग्रंथों के इस विवरण से यह सिद्ध होता है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ माता लक्ष्मी को जो बातें पसंद हैं, उन्हें अपने चरित्र में, दैनिक क्रियाओं में अपनाने का संकल्प लिया जाए तथा जो दुर्गुण माता लक्ष्मी को पसंद नहीं, ऐसे सब अवगुण सदा के लिए त्यागने का संकल्प लेना चाहिए। तभी माता लक्ष्मी न केवल आती हैं, बल्कि स्थायी समृद्धि, वैभव, सुख, शांति, संपन्नता का अतुलनीय खजाना साथ लेकर आती हैं।

धन का सदुपयोग करने— अर्थात धर्मशाला में प्याऊ बनवाने, वृक्ष लगाने, स्कूल, अस्पताल, वृद्धाश्रम आदि के लिए दान देने से माता लक्ष्मी की प्रसन्नता बढ़ती है।

वहीं धन का दुरुपयोग, शान-शौकत दिखावा, विलासिता, कंजूसी, बुरे कार्यों में धन खर्च करना, धनवान होकर निर्धन पर अत्याचार करना माता लक्ष्मी का अपमान है। पैसे के उपयोग में जो सावधानियां बरतनी चाहिए, यही माता लक्ष्मी की पूजा में निहित है। धन का उपयोग हमारे समाज, व्यक्ति तथा देशहित में हो, यही सच्ची लक्ष्मी पूजा है। प्रत्येक व्यक्ति को यह स्मरण रखना चाहिए कि पुण्य से कमाया धन ही जीवन में सुख, समृद्धि देता है; जो पापयुक्त धन है, वह व्यक्ति का एक दिन सर्वनाश करता ही है —यह अटल सत्य है।

वि.फी.

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