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कर्म और आयु

एकदा

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भगवान पुनर्वसु आत्रेय अपने शिष्यों के साथ गमन कर रहे थे, तभी उनके शिष्य अग्निवेश ने उनसे पूछा कि सभी प्राणियों की आयु के निर्धारण का क्या आधार है? इसके उत्तर में भगवान आत्रेय ने कहा, ‘इस संसार में प्राणियों की आयु उनके कर्मों और युक्तियों पर निर्भर करती है। आयु की दीर्घता या अल्पता, सुख या दुःख, दैव (भाग्य) और पुरुषकार (स्वयं के कर्म) की शक्ति और अनुकूलता पर निर्भर करती है। जब दैव और पुरुषकार दोनों ही श्रेष्ठ होते हैं, तब आयु दीर्घ, सुखमय और नियत होती है। लेकिन जब दोनों ही कमजोर होते हैं, तो आयु अल्प, दुःखमय और अनियत हो जाती है। बलवान पुरुषकार, दुर्बल दैव को पराजित कर सकता है, जबकि बलवान दैव, दुर्बल पुरुषकार को पराजित कर सकता है। इस प्रकार, कुछ लोग मानते हैं कि आयु का निर्धारण निश्चित और नियत होता है, क्योंकि दैव और पुरुषकार दोनों ही आयु पर प्रभाव डालते हैं।’

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