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हिंदू-सिख एकता का प्रतीक कपाल मोचन मेला

मेला तीर्थ कपाल मोचन : 23 से 27 नवंबर
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सुरेंद्र मेहता

उत्तरी भारत का प्रसिद्ध तीर्थ कपाल मोचन मेला विभिन्न धर्मों-जातियों की एकता और भाईचारे का प्रतीक है। ग्रन्थों में इस स्थान को महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास की तप व कर्म स्थली तथा सिन्धु वन के नाम से जाना जाता है। इसके दक्षिण में ब्यासपुर है जिसे अब बिलासपुर के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही पश्चिम दिशा में सरस्वती नदी प्रवाहित होती है। मान्यता है कि इसी स्थान पर बैठकर महर्षि वेद व्यास ने महाभारत महाकाव्य की रचना की थी। कपालमोचन से उत्तर की दिशा में शिवालिक की पहाडिय़ों से सरस्वती नदी का उद्गम स्थल आदिबद्री है। यहां केदारनाथ और माता मंत्रा देवी का मन्दिर है। कपाल मोचन मेले में आने वाले श्रद्धालु आदिबद्री, केदारनाथ और माता मंत्रा देवी के दर्शनों के लिए भी जाते हैं। यह स्थान आस्था के साथ ही पर्यटन की दृष्टि से भी काफी मनोरम है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होने वाले इस ऐतिहासिक मेले में हर वर्ष हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली, चड़ीगढ़, सहित कई राज्यों से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। बिलासपुर में राज्य स्तरीय मेला कपाल मोचन मेले का शुभारंभ 23 नवम्बर को साधु शाही स्नान से होगा।

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कपालमोचन सरोवर की महता

मेले में आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले कपाल मोचन सरोवर में स्नान करते हैं। महाभारत और वामन पुराण में उल्लेख है कि कपालमोचन सरोवर का प्राचीन नाम सोमसर एवं औशनस तीर्थ था। पौराणिक कथा के अनुसार, ब्राह्मण की हत्या करने के कारण एक बछड़े व उसकी माता गाय को ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था, जिससे गाय-बछड़े दोनों का रंग काला पड़ गया। गाय-बछड़े ने कपालमोचन में स्नान किया और पाप-मुक्त हो गए। पुन: दोनों का रंग सफेद हो गया। यह कथा भगवान शंकर ने इस सरोवर के पास बसे एक ब्राह्मण के घर रात को इसी गाय व बछड़े से सुनी। भगवान शंकर को भी ब्रह्म हत्या का दोष लगा हुआ था और मुक्ति के लिए विभिन्न धामों की यात्रा कर रहे थे। शंकर भगवान ने कपालमोचन में स्नान करके ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाई। इस स्थान पर भगवान राम और भगवान कृष्ण के आने की भी मान्यता है। गुरु नानक देव जी भी यहां पधारे। वहीं गुरु गोबिन्द सिंह भी दो बार यहां पर आए थे। सभी ने यहां के पवित्र सरोवरों में स्नान किया था। इसी सरोवर के निकट गुरु गोबिंद सिंह ने माता चण्डी की मूर्ति की स्थापना की थी। वही मंदिर तथा गऊ-बछड़े पत्थर की मूर्ति यहां विद्यमान हैं।

ऋण मोचन सरोवर

कपाल मोचन सरोवर की पूर्व दिशा व कपालमोचन के मध्य ऋणमोचन सरोवर है। कपाल मोचन के बाद श्रद्धालु ऋण मोचन में स्नान करते हैं। मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से ऋणों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठिर व भगवान कृष्ण ने ब्यासपुर में कपालमोचन सरोवर के नजदीक खुदाई की तो अमृत जल की धारा निकली। यहीं भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों के साथ ठहरकर यज्ञ किया, पांडवों के पूर्वजों का पिंड दान करवाया। उनके पितृ ऋण से मुक्त होने के कारण इस सरोवर का नाम ऋण मोचन प्रसिद्ध हो गया। मान्यता है कि त्रेता युग में रावण वध के बाद भगवान रामचंद्र भी यहां आए थे। वहीं इस युग में गुरु गोबिन्द सिंह भी यहां दो बार आए। यहां 52 दिन रहकर पूजा-अर्चना की। वहीं युद्ध के बाद यहां अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे।

सूरज कुंड सरोवर

कपालमोचन और ऋण मोचन सरोवर में स्नान करने के बाद श्रद्धालु सूरज कुंड सरोवर में स्नान करते हैं। इस सरोवर के साथ भी अनेक दंत कथाएं जुड़ी हैं जिनके अनुसार भगवान श्री रामचंद्र रावण का वध करने के बाद माता सीता और भाई लक्ष्मण व हनुमान जी सहित पुष्पक विमान द्वारा कपालमोचन सरोवर में स्नान करके ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए। यहां पर भगवान राम ने एक कुंड का निर्माण किया जिसे सूरजकुंड के नाम से जाना जाने लगा। जन श्रुति के अनुसार, सिन्धू वन के इस पवित्र स्थान पर माता कुंती ने सूर्य देव की तपस्या की थी। श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के साथ इस सरोवर में स्नान किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार, यहां एक सिद्ध पुरुष दुधाधारी बाबा रहते थे। आस पास के क्षेत्र के लोग उनके तपस्थल पर आते थे। बाबा की समाध पर बेरी का पेड़ है जिस पर परांदा बांध लोग मुरादें मांगते हैं। आज भी मेले के समय साधु आकर सूरज कुण्ड सरोवर के तट पर तपस्या करते हैं।

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