सुरेन्द्र सिंह मलिक
परमात्मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वह विश्व की सर्वशक्तिमान सत्ता है और ज्ञान का सागर है। परमात्मा विश्व की सर्व आत्माओं का निराकार माता-पिता है। परमात्मा के साथ संबंध की स्मृति और उसके प्रति प्रेम को राजयोग कहा जाता है। यह परमात्मा से आत्मबोध का मार्ग है। राजयोग का अभ्यास साधक को आध्यात्मिक परिवर्तन की शक्ति प्रदान कर संस्कारवान बनाता है, जिससे साधक को आध्यात्मिक व शारीरिक लाभ मिलता है।
ब्रह्माकुमारीज की बीके पूनम कहती हैं कि राजयोग शिक्षा को आत्मसात करें तो पता चलता है कि व्यक्ति का अस्तित्व उसके शरीर से न होकर आत्मा से है। शरीर केवल एक यंत्र की तरह है। आत्मस्वरूप से मिलन हो जाये तो रूहानियत का सहज ही आभास हो जाता है। आत्मा का स्वरूप एक ज्योति बिंदू की तरह है और वही स्वरूप परमात्मा का भी है। तभी तो आत्मस्वरूप में रहकर परमात्मा से लौ लगाना आसान है।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक ब्रह्मा बाबा कहा करते थे कि कनेक्शन परमात्मा से जुड़ जाए तो व्यक्ति में विकार भाव समाप्त होकर पवित्रता जन्म ले लेती है और व्यक्ति, व्यक्ति न होकर देवत्व में परिवर्तित हो जाता है। राजयोग के इसी रहस्य के बारे में अवगत कराने हेतु ब्रह्मा बाबा ने दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाया।
व्यक्ति के चरित्र निर्माण के लिए आंतरिक परिवर्तन की शक्ति राजयोग से प्राप्त होती है। अध्यात्म से आंतरिक शांति आती है। ब्रह्मा बाबा मानते थे कि बिना मानसिक स्वास्थ्य के कोई राष्ट्र समृद्धि की ओर नहीं बढ़ सकता।
संस्था के अनुसार राजयोग अंतर्जगत की ओर एक यात्रा है। यह स्वयं को जानने या यूं कहें कि पुन: पहचानने की यात्रा है। राजयोग अर्थात् भागदौड़ भरी जिंदगी से थोड़ा समय निकालकर शांति से बैठकर आत्म निरीक्षण करना। इस तरह का समय निकालने से हम अपने चेतना के मर्म की ओर लौट आते हैं। जब हम स्वयं को आत्मा मानते हैं, तब हम स्वयं के अनादि और मूल रूप के चिंतन में रहते हैं, स्वयं को इसी आधार से जानते हैं और ऐसी सोच में ही रहते हैं।