ब्रिटेन के जाने-माने पत्रकार राफेल हर्स्ट (कलम नाम पॉल ब्रंटन) की रुचि धर्म, रहस्यवाद और दर्शन में थी। उनकी यह रुचि ही उन्हें भारत खींच लाई। 1930 के दशक में वह भारत आए और अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए बहुत से साधु-संतों और योगियों से मिले। इसी कड़ी में वह महान संत श्री रमण महर्षि से उनके अरुणाचल स्थित रामणाश्रम में मिले। अंग्रेज लेखक ने अपने ढेरों प्रश्न महर्षि के सामने रखे। महर्षि ने कहा—पहले अपने आपको जानो कि मैं कौन हूं? फिर न तुम्हारी जिज्ञासायें रहेंगी और न ही प्रश्न। महर्षि ने कहा है—न तो मैं यह स्थूल शरीर हूं, न ही मैं मन हूं। ज्ञानेंद्रियां और कर्मेंद्रियां भी मैं नहीं हूं। अगर ये सब नहीं, तो फिर मैं कौन हूं? महर्षि कहते हैं—मैं चैतन्य का स्वरूप सच्चिदानंद हूं। पॉल ब्रंटन भारत के साधु-संतों, योगियों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने पत्रकारिता के करिअर को त्याग कर आध्यात्मिक शिक्षाओं का अध्ययन करना शुरू कर दिया। ब्रंटन की दो प्रसिद्ध पुस्तकें ‘अ सर्च इन सीक्रेट इंडिया’ तथा ‘दी सीक्रेट पाथ’ ने अद्वैत के साकार रूप श्री रमण महर्षि का परिचय पाश्चात्य देशों को कराया।
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा