Jagannath Rath Yatra : भगवान की रस्सी, मोक्ष की डोरी... श्री जगन्नाथ रथ की रस्सी इसलिए छूते हैं श्रद्धालु
चंडीगढ़, 27 जून (ट्रिन्यू)
Jagannath Rath Yatra : हर साल ओडिशा के पुरी शहर में होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल धार्मिक नजरिए से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके कई रहस्यमयी पहलू भी हैं। इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है - भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों को खींचना और इस रथ को खींचने के लिए जो रस्सी उपयोग होती है, उसे भक्तगण श्रद्धा से छूते व चूमते हैं और कुछ तो सिर पर भी रखते हैं। आखिर क्यों? क्या है इस रस्सी को छूने के पीछे छिपा आध्यात्मिक रहस्य? आइए जानते हैं....
भगवान से जुड़ने का माध्यम
पुरी रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों में विराजमान होते हैं। इन रथों को खींचने के लिए विशाल रस्सियों का उपयोग किया जाता है। भक्तों की आस्था के अनुसार, यह रस्सी केवल एक डोरी नहीं बल्कि भगवान के साथ सीधा संबंध स्थापित करने का एक जरिया है। जब कोई भक्त इस रस्सी को छूता है या खींचता है तो उसे ऐसा अनुभव होता है मानो वह स्वयं भगवान को अपने घर आमंत्रित कर रहा हो। यह एक भक्ति का कार्य है, जिसमें भक्त स्वयं को भगवान की सेवा में समर्पित करता है।
रस्सी छूने से नष्ट हो जाते हैं पाप
पुराणों और लोक मान्यताओं के अनुसार, रथ यात्रा की रस्सी को खींचना अथवा उसे केवल छू लेना ही अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। कहा जाता है कि इस रस्सी को छूने मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। यह मान्यता स्कंद पुराण में भी वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि रथ खींचने वाला भक्त भगवान के चरणों में विशेष स्थान पाता है।
समानता और एकता का प्रतीक
पुरी रथ यात्रा का एक अद्भुत पहलू यह है कि इसमें जाति, वर्ग, धर्म का कोई भेद नहीं होता। आम व्यक्ति हो या कोई राजा, सभी भक्त एक ही रस्सी को खींचते हैं। यही रस्सी सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक बन जाती है। रस्सी को छूने या खींचने के दौरान, हर भक्त एक ही उद्देश्य से जुड़ता है - भगवान की सेवा। यह अहंकार को समाप्त कर विनम्रता की भावना को जन्म देता है।
मानसिक और आत्मिक ऊर्जा का संचार
भारतीय संस्कृति में स्पर्श (touch) को अत्यंत प्रभावशाली माध्यम माना गया है। जब कोई भक्त आस्था के साथ रथ की रस्सी को छूता है, तो वह न केवल एक भौतिक वस्तु को छूता है, बल्कि वह एक दैवीय ऊर्जा से जुड़ता है। यह स्पर्श भक्त के भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे उसमें सकारात्मकता, श्रद्धा और समर्पण की भावना बढ़ती है।
भगवान के स्पर्श समान
कई भक्त यह मानते हैं कि रथ की रस्सी को छूना स्वयं भगवान जगन्नाथ के शरीर को छूने के समान है। क्योंकि भगवान उसी रथ पर विराजमान होते हैं, जिसे ये रस्सी खींचती है, तो यह रस्सी उनके शरीर का ही एक हिस्सा बन जाती है - ठीक वैसे ही जैसे भक्त माला, वस्त्र, या चरणामृत को पूजते हैं इसलिए रस्सी को छूना, चूमना या सिर से लगाना वास्तव में श्रद्धा और प्रेम की अभिव्यक्ति है।
मिलता है भगवान का आशीर्वाद
पुरी रथ यात्रा वर्ष में केवल एक बार होती है। भगवान जगन्नाथ को उनके निवास स्थान (श्री मंदिर) से बाहर लाकर, गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। इस दौरान भगवान को आम जनता के दर्शन का अवसर मिलता है, जिसे “पाहंडी” कहा जाता है इसलिए इस विशेष अवसर पर रथ की रस्सी को छूना, एक आशीर्वाद के समान होता है, जिसे हर भक्त पाना चाहता है।
भक्त और भगवान के बीच का पुल
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो रथ की रस्सी केवल एक माध्यम नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच का प्रेम-बंधन है। यह रस्सी भक्त के मन की भावना को भगवान तक पहुंचाती है, और यह जुड़ाव संबंधों से भी बढ़कर होता है। यह रस्सी बताती है कि भक्ति में कोई दूरी नहीं होती - भगवान स्वयं भक्त के पास आते हैं और भक्त अपने सेवा-भाव से उन्हें खींच लाते हैं।
डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।