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संतों के स्वभाव में शामिल अपने हिस्से का यश जग में बांट देना

डॉ. साधु ज्ञाानानंद दास गत 14 फरवरी को संयुक्त अरब अमीरात स्थित अबूधाबी का सूर्योदय एक ऐतिहासिक घटना का साक्षी बना। यह घटना मंदिर निर्माण से जुड़ी है। अबूधाबी में नवनिर्मित सनातनी हिंदू मंदिर में प्रातःकाल में मूर्ति-प्रतिष्ठा के निमित्त...
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डॉ. साधु ज्ञाानानंद दास

गत 14 फरवरी को संयुक्त अरब अमीरात स्थित अबूधाबी का सूर्योदय एक ऐतिहासिक घटना का साक्षी बना। यह घटना मंदिर निर्माण से जुड़ी है। अबूधाबी में नवनिर्मित सनातनी हिंदू मंदिर में प्रातःकाल में मूर्ति-प्रतिष्ठा के निमित्त वैदिक मन्त्र समूचे वातावरण में गूंज रहे थे। प्रचार और प्रसारण माध्यमों का ध्यान व उनके दस्ते मरुस्थल में बने बीएपीएस हिन्दू मंदिर पर केन्द्रित थे। इस्लामी सभ्यता-संस्कृति और इस्लामी अनुयायियों की इस धरती पर भारतीय सभ्यता और संस्कृति से संबंधित निर्माण निस्संदेह सामान्य से अलग ही घटना थी।

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सह-अस्तित्व शब्द का मूर्त रूप

विश्व के प्रत्येक देश, धर्म, समाज, और भाषा में परस्पर प्रेम, भ्रातृत्व, सौहार्द्र, सह-अस्तित्व आदि शब्द प्रचलित हैं, किन्तु ये शब्द मूर्त रूप में सामने आये हैं यूएई में इस मंदिर की स्थापना के साथ। दरअसल यह अलग-अले देशों, संस्कृतियों और धर्मों को एक साथ करीब लाने वाला है। आजकल यह मंदिर अंतर्राष्ट्रीय प्रसार माध्यमों की सुर्खियां बटोर रहा है। अबू धाबी के बीएपीएस मंदिर में महाप्रभु स्वामी नारायण के अलावा यहां सीता-राम, लक्ष्मण जी, हनुमान जी, शिव-पार्वती का विग्रह, राधा-कृष्ण, श्री गणेश, भगवान जगन्नाथ और भगवान अयप्पा समेत कई देवताओं की प्रतिमा का भी पूजन-अर्चन किया जाएगा।

रचनाशील व्यक्तित्व के प्रयास

इस मंदिर की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान है- सहज व्यक्तित्व से परिपूर्ण महंत स्वामी महाराज का! केवल कि्रयात्मक रूप से नहीं, सदा काल से उनका मन भी मान और सम्मान की आशा से अछूता रहता है। महंत स्वामी महाराज आजन्म ‘निर्मानी’ यानी रचनाशील व्यक्तित्व हैं, वह भी सरल स्वभाव के साथ।

लिखकर प्रकट किये उद्गार

बीएपीएस का पूरा नाम बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामिनारायण संस्था चैरिटी धर्मार्थ संस्था है, जो स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़ी हुई है। संस्था के प्रमुख तथा अबूधाबी मंदिर के निर्माता महंत स्वामी महाराज ने इस मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बारे में अपना अनुभव व अनुभूति एक कागज के टुकड़े पर लिखकर प्रकट किये। भक्तों को संबोधित उनके उद्गार थे - ‘आज वसंत पंचमी का उत्सव है। यह हमारे गुरु शास्त्रीजी महाराज की जयंती है। यह अबूधाबी के भव्य और दिव्य मंदिर में मूर्ति-प्रतिष्ठा का उत्सव है। आपकी सेवा भुलाई नहीं जाती। जब मैं प्रतिष्ठा की आरती कर रहा था तो आप सभी को याद कर रहा था। आप सभी अक्षर पुरुषोत्तम के सच्चे भक्त हैं, नियम-धर्म का पालन करते हैं और सेवा करते हैं। आपका मन अबूधाबी मंदिर में है और मेरा मन आप में है।’

‘सभी के योगदान की जयकार’

विश्व का मन जब अबूधाबी के मंदिर की ओर में लगा हुआ हो तब स्वामीजी के मन में केवल भक्तों के हित की कामना थी। मंदिर निर्माता ने मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने वक्तव्य में अपने परिश्रम, योग्यता, आशीष तथा प्रेरणा का कोई गान नहीं किया। उन्होंने उस समय भी सभी लोगों के योगदान की जयकार की जिन्होंने गुरु प्रमुख स्वामीजी महाराज के अबूधाबी मंदिर निर्माण के संकल्प को साकार किया। साथ ही सभी धर्मों देशों के बीच प्रेम और भाईचारे के लिए प्रार्थना की।

यश बांट देना सबसे कठिन

वस्तुतः किसी अद्भुत कृति का सर्जन अति कठिन है, उससे भी कठिन है कृति के करने का यश न लेना, किन्तु कृति का यश दूसरों में बांट देना सबसे कठिन है। इन्हें विरले संत ही कहा जा सकता है जो न केवल अपने कार्यों का यश दूसरों को बांट देते हैं अपितु लेने वाले को भी ऐसा अहसास नहीं होने देते है कि वे कुछ ले रहे हैं। यद्यपि समय की इस अविरत धारा में अनेक धनी, दानी और समर्थ सर्जक आए, किन्तु धन-संपत्ति की ताकत से एक ऊंची इमारत तक फैली ‘भव्यता’ खरीदी जा सकती है, लेकिन सगुणी जीवन की पवित्रता के सैकड़ों स्पर्शों की ऐसी ‘दिव्यता’ केवल संत महापुरुष के संस्पर्श से ही मिल सकती है।

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