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सामाजिक समरसता और समानता के प्रेरणास्रोत

संत रविदास जयंती 12 फरवरी

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संत रविदास भारतीय समाज के महान संत और समाज सुधारक थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल में जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई। उनकी शिक्षाएं आज भी समाज में समानता और सद्भाव का संदेश देती हैं।

आर.सी. शर्मा

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महान संत रविदास आज अपने समय से भी कही ज्यादा प्रासंगिक हैं तो इसीलिए क्योंकि वह सामाजिक समरसता के संवाहक हैं। भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक संत रविदास ने जाति और भेदभाव के विरुद्ध उस समय पुरजोर आवाज उठायी थी, जब इसे जीवन का सहज हिस्सा माना जाता था। अपने समय में संत रविदास ने गैरबराबरी के विरुद्ध अपनी शिक्षाओं से सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ाए, जो आज भी कारगर हैं। संत शिरोमणि रविदास विशेष रूप से इस देश के कमजोर और हाशिये के समुदायों के लिए सदैव प्रेरणादायक रहे हैं। सामाजिक समरसता का संदेश देने वाली उनकी कविताएं आज भी उतना ही महत्व रखती हैं, जितना उस समय रखती थीं, जब इन्हें उस महान संत ने रचा था।

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संत रविदास का मानना था कि जन्म से कोई ब्राह्मण और न कोई शूद्र होता है। हर कोई अपने कर्म से छोटा या बड़ा होता है। वह कहते हैं। गृहस्थाश्रम में रहते हुए रैदास उच्चकोटि के विरक्त संत थे। उन्होंने अपना सारा जीवन सामाजिक समरसता का गुणगान करते हुए बिताया था। संत रविदास के 40 पद गुरुग्रंथ साहिब में शामिल हैं, जिनका संपादन गुरु अर्जुन देव ने किया था। संत रविदास के कई भजन आज भी श्रद्धाभाव से गाये जाते हैं, जैसे-

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी

जाकी अंग अंग बास समानी

जातिवाद और अंधविश्वास के खिलाफ संत रविदास ने जो अलख 15वीं सदी में लगायी थी, उस अलख का प्रभाव आज भी मौजूद है। रविदास जयंती, संत रविदास जी के जन्मदिन का प्रतीक है। संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन सवंत 1433 में काशी के सीर गोवर्धन गांव में रहने वाले एक चर्मकार के परिवार में हुआ था। उनके पिता रघु चर्मकार थे और मां घुरविनिया गृहणी थीं। संत रविदास बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे, साधु संतों की संगति उन्हें बहुत प्रिय थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के एक स्थानीय गुरु से हुई, लेकिन उनका ज्ञान बचपन से ही आध्यात्मिकता से ओतप्रोत था। जाति प्रथा के उन्मूलन के प्रयास में अपनी पूरी जिंदगी लगा देने वाले संत रविदास, संत कबीर के दोस्त थे। सिख पंथ में उन्हें संत शिरोमणि की पदवी दी गई है। जात-पात का खंडन करके आत्मज्ञान का मार्ग दिखलाने वाले संत रविदास जी का कोई गुरु नहीं था। कुछ लोगों के मुताबिक वह बौद्ध परंपरा के अनुयायी और प्रच्छन्न बौद्ध थे। वह जिस तरह जात-पात पर विश्वास नहीं करते थे, उसी तरह से कर्मकांड पर भी भरोसा नहीं करते थे। वह दिनभर अपने व्यवसाय में तत्पर रहते थे और लोगों को उपदेश देते थे।

‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ उन्हीं की मशहूर उक्ति है। कुछ लोग उनसे चलकर गंगा में स्नान करने का जब आग्रह करते थे, तो उनका कहना होता था कि अगर आपका मन साफ है तो उनकी इसी कठौती में गंगा मौजूद है। संत रविदास कवि संत थे। वह राम, कृष्ण, करीम, राघव सबको ही पिता परमेश्वर समझते थे और मानते थे कि वेद, पुराण और कुरआन में एक ही परमेश्वर का गुणगान है।

संत रविदास जी की ख्याति उनके सरल स्वभाव और सहज आध्यात्मिक ज्ञान के कारण फैली थी। वो बेहद कर्मठ और हमेशा भक्तिभाव में डूबे रहने वाले थे। उन्होंने बहुत सरल भाषा में अपनी कविताएं रचीं। मुख्यतः ब्रज और अवधी में। संत रविदास सिर्फ धार्मिक संत ही नहीं बल्कि समाज सुधार में आगे रहने वाले सामाजिक क्रांतिकारी थे। उन्होंने अपने छल-कपट रहित जीवन से लोगों के मन और मस्तिष्क बदले थे। उन्होंने हमेशा प्रेम, समानता और ईश्वर भक्ति पर जोर दिया। आज संत रविदास के प्रति लोगों में बहुत आदर इसलिए है, क्योंकि जो समुदाय उन्हें अपना प्रेरक अगुवा मानता है, वह उनकी शिक्षाओं से जागरूक और सशक्त बन चुका है। इ.रि.सें.

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