Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

पिंडी रूप में होती है उनकी पूजा

माता जयंती देवी

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

मान्यता है कि जब विवाह के बाद राजकुमारी की डोली नहीं उठी, तो चिंतित परिवार ने राजकुमारी से इस बारे में पूछा। उसने स्वप्न में माता द्वारा दिये दर्शन बारे में बताया। तत्पश्चात माता की डोली भी उसकी डोली के साथ सजाई गई। इस प्रकार राजकुमारी के साथ माता की डोली भी विदा हुई।

बृज मोहन तिवारी

Advertisement

चंडीगढ़ में दो प्रसिद्ध मंदिर हैं एक मनसा देवी और दूसरा जयंती देवी। दोनों मंदिरों का अपना-अपना विशेष महत्व है। माता जयंती देवी का प्राचीन मंदिर चंडीगढ़ से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर गांव जयंती माजरी, मोहाली में स्थित है। ऊपर मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यहां मंदिर में माता पिंडी रूप में स्थापित हैं।

Advertisement

प्रचलित कथा के अनुसार, बाबर के शासनकाल में हथनौर का राजा एक राजपूत था, जिसके 22 भाई थे। उनमें से एक भाई की शादी कांगड़ा के राजा की बेटी से तय हुई थी, जो माता जयंती देवी की बड़ी उपासक थीं। वह रोजाना माता के दर्शन करने के बाद ही जलपान ग्रहण करती थीं। विवाह के विचार से वह व्याकुल हो उठीं कि माता से दूर कैसे रह पाएंगी। एक दिन माता ने उसे सपने में दर्शन दिए और विश्वास दिलाया कि उसकी डोली तभी उठेगी जब उसकी (माता) डोली भी साथ उठेगी।

बताया जाता है कि जब विवाह के बाद राजकुमारी की डोली नहीं उठी, तो चिंतित परिवार ने राजकुमारी से इस बारे में पूछा। उसने स्वप्न में माता द्वारा दिये दर्शन बारे में बताया। तत्पश्चात माता की डोली भी उसकी डोली के साथ सजाई गई। इस प्रकार राजकुमारी के साथ माता की डोली भी विदा हुई। राजकुमारी और उसकी तीन पीढ़ियों ने लगभग दो सौ वर्षों तक मां की पूजा-अर्चना की। लेकिन बाद में मां जयंती को भुला दिया। मां जयंती देवी का यहां छोटा-सा मंदिर वीरान हो गया था।

बताया जाता है कि कालांतर में मां जयंती देवी ने अपने एक भक्त गरीबू को सपने में दर्शन दिए। कालांतर में माता ने उसे हथनौर का राजा बनकर राज करने का आदेश दिया। गरीबू जो वहीं जंगलों में रहता था, ने अपने साथियों के साथ हथनौर पर चढ़ाई कर दी। गरीबू ने मां की कृपा से गांव मुल्लांपुर गरीबदास की स्थापना की। उसने पहाड़ी पर मां जयंती देवी के छोटे से मंदिर के स्थान पर एक किलेनुमा बड़े मंदिर का निर्माण भी करवाया। मंदिर में माता की पिंडी रूप में स्थापना की गई थी। यह मंदिर लगभग छह सौ साल पुराना है।

ऊंचे टीले पर स्थित मां जयंती देवी का मंदिर श्रद्धालुओं को काफी आकर्षित करता है। आसपास शिवालिक पहाड़ियों के बीच स्थित मंदिर आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। जयंती देवी मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर भगवान शिव का मंदिर है। मां जयंती देवी के दर्शन के बाद भक्त शिव के दर्शन करने जाते हैं। कहा जाता है कि बिना शिव के दर्शन के यात्रा पूरी नहीं मानी जाती। यहां शिव की पिंडी धरती से प्रकट हुई थी।

Advertisement
×