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तपस्या का हजारीबाग

एकदा

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बिहार के एक छोटे से गांव में हजारी नामक किसान अक्सर देखता था कि लोग हरे-भरे पेड़ों को उखाड़ फेंकते थे। जब पेड़ों पर कुल्हाड़ी का वार होता, तो वह बहुत दुखी होता। एक दिन उसने गांव के लोगों को एकत्रित कर कहा, ‘अगर हम ऐसे ही पेड़ों को नष्ट करते रहे तो हमारा अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।’ जब हजारी को लगा कि लोग उसकी बात नहीं मानेंगे, तो उसने दृढ़ संकल्प किया कि वह प्रतिदिन खेत पर आते-जाते दो पौधे अवश्य लगाएगा और उनकी देखभाल भी करेगा। पहले लोगों ने उसे ऐसा करते देख मजाक उड़ाया, मगर जब उन्होंने देखा कि हजारी पर उनकी नकारात्मक बातों का कोई असर नहीं हो रहा, तो वे चुप हो गए। हालांकि, कुछ युवाओं ने हजारी का साथ देने का निश्चय किया और वे भी उसकी देखा-देखी पौधे लगाने लगे। इस तरह कुछ ही समय में वहां पर कई पेड़ लहलहाते नजर आने लगे और उस स्थान का कायापलट हो गया। हजारों पेड़ों की कतार यहां का प्रमुख आकर्षण बन गई। धीरे-धीरे इस स्थान को लोगों ने हजारी की अद्भुत तपस्या के कारण ‘हजारीबाग’ कहना शुरू कर दिया। आज वही हजारीबाग झारखंड का एक अत्यंत सुंदर पर्यटक स्थल है।

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