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Gyan ki Baatein : तकिए के नीचे चाकू रखो, बुरे सपने नहीं आएंगे... ऐसा क्यों कहती है दादी-नानी?

Gyan ki Baatein : तकिए के नीचे चाकू रखो, बुरे सपने नहीं आएंगे... ऐसा क्यों कहती है दादी-नानी?
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चंडीगढ़, 17 मार्च (ट्रिन्यू)

Gyan ki Baatein : "तकिए के नीचे चाकू रखो, बुरे सपने नहीं आएंगे..." यह कथन न केवल एक लोक विश्वास है बल्कि यह मानसिक शांति, सुरक्षा, और सांस्कृतिक परंपरा का भी प्रतीक है। इसे भारतीय दादी-नानी अक्सर बच्चों को कहती हैं। भले ही इसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो, लेकिन यह कथन पारंपरिक जीवनशैली, विश्वासों और भावनात्मक सुरक्षा का एक हिस्सा है।

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सांस्कृतिक मान्यता और लोक विश्वास

भारत में कई स्थानों पर, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में लोग बुरे सपनों से बचने के लिए तकिए के नीचे चाकू रखते हैं। ऐसा माना जाता था कि चाकू नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करने की क्षमता रखता है। चाकू बुरे आत्माओं या भूत-प्रेतों को भी दूर रखता है।

सुरक्षा और आत्मविश्वास

एक अन्य पहलू यह भी है कि चाकू का इस्तेमाल बच्चों के मानसिक सुरक्षा के रूप में किया जाता था। बचपन में बच्चों को रात में डर लगना सामान्य बात है और दादी-नानी यह चाहती थीं कि बच्चे रात को आराम से सो सकें। चाकू को तकिए के नीचे रखने से बच्चे को मानसिक शांति और सुरक्षा का अहसास होता था। यह एक प्रकार का भावनात्मक सहारा था, जो बच्चों को डर से उबरने में मदद करता था।

धार्मिक और तंत्र-मंत्र का प्रभाव

भारत में तंत्र-मंत्र का प्रचलन काफी पुराना है। कई लोग मानते हैं कि तंत्र-मंत्र के द्वारा बुरी शक्तियों को काबू किया जा सकता है। चाकू को एक प्रकार के तंत्रिक उपाय के रूप में देखा जाता था। इसे एक प्रकार से "रक्षा कवच" माना जाता था जो बुरे प्रभावों और भूत-प्रेतों को दूर रखता है। खासकर रात के समय जब अंधेरा और शांति होती है, तब बुरे सपने और बुरी आत्माएं उत्पन्न होने का डर होता था। ऐसे में चाकू को तकिए के नीचे रखना उन विश्वासों का हिस्सा था।

मनोवैज्ञानिक पहलू

अगर हम इस कथन को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो यह भी एक प्रकार का संज्ञानात्मक सुरक्षा तंत्र हो सकता है। जब बच्चों को यह विश्वास दिलाया जाता था कि चाकू उनके पास है, तो उनका डर कम हो जाता था और वे महसूस करते थे कि कुछ शक्तिशाली वस्तु उनके पास है, जो उन्हें खतरे से बचाएगी। यह मानसिक स्थिति उनकी चिंता और डर को कम करने में मदद कर सकती थी, जिससे वे शांतिपूर्वक सो सकते थे।

व्यावहारिक दृष्टिकोण

यह भी हो सकता है कि प्राचीन समय में लोग घरों में सुरक्षा के उपायों के तौर पर तेज धार वाली वस्तुओं का इस्तेमाल करते थे और यह एक आदत बन गई होगी कि चाकू को रात में अपनी सुरक्षा के लिए पास रखा जाए। फिर यह आदत बच्चों में भी डाल दी जाती थी, ताकि वे रात के समय आत्म-सुरक्षा का अनुभव कर सकें।

डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।

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