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Gyan ki Baatein : चांद को देखकर खाना मत खाओ... ऐसा क्यों कहती है दादी-नानी?

Gyan ki Baatein : चांद को देखकर खाना मत खाओ... ऐसा क्यों कहती है दादी-नानी?
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चंडीगढ़, 26 मार्च (ट्रिन्यू)

Gyan ki Baatein : चांद को देखकर खाना मत खाओ, यह एक प्राचीन परंपरा है जो भारतीय संस्कृति और लोक विश्वासों से जुड़ी हुई है। यह कहावत दादी-नानी द्वारा अक्सर सुनाई जाती है और इसके पीछे कई तरह के धार्मिक, सांस्कृतिक, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण छुपे होते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों यह कहा जाता है और इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं।

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चांद को देखकर क्यों नहीं खाना चाहिए खाना?

भारतीय संस्कृति में चांद को देवता माना जाता है, खासकर हिन्दू धर्म में। चांद को सोम या चंद्र देवता के रूप में पूजा जाता है। कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चांद की रोशनी रात के समय वातावरण में कुछ विशेष ऊर्जा छोड़ती है। ऐसे में चांद की रोशनी में भोजन करने से वो ऊर्जा शरीर में जाकर अन्य तत्वों का संतुलन बिगाड़ सकती है। इसका स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है इसलिए दादी-नानी चांद को देखकर भोजन करने के लिए मना करती हैं।

पुराने समय से चली आ रही परंपरा

भारतीय घरों में दादी-नानी अक्सर पारंपरिक रीति-रिवाजों और आदतों को पालन करने के महत्व पर जोर देती हैं। यह कहावत भी एक पुराने समय के विश्वासों का हिस्सा हो सकती है। पहले के समय में चांद की रोशनी को पवित्र माना जाता था और उसे भगवान से जुड़ा हुआ माना जाता था। इस विश्वास के तहत, चांद को देखकर खाना खाने से मानसिक शांति और संतुलन में बाधा उत्पन्न हो सकती है। इसके अतिरिक्त, चांद की उपस्थिति का प्रभाव मौसम और वातावरण पर भी पड़ता था, जिसे ध्यान में रखते हुए कुछ पारंपरिक सुझाव दिए गए थे।

स्वास्थ्य और विज्ञान

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह कहा जा सकता है कि चांद के दिखने के समय वातावरण में आर्द्रता और तापमान में परिवर्तन होते हैं। चांद की रोशनी से वातावरण में कुछ विशेष प्रकार की तरंगें और दबाव उत्पन्न होते हैं, जो शरीर में अप्रत्याशित प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि चांद को देखकर खाना खाने से पाचन तंत्र में समस्या उत्पन्न हो सकती है, हालांकि यह विज्ञान से प्रमाणित नहीं है।

आध्यात्मिक और मानसिक शांति

कई बार यह भी माना जाता है कि चांद की रोशनी मानसिक शांति और आत्म-संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकती है। चांद की सफेद रोशनी से मन में कुछ उथल-पुथल हो सकती है, और मानसिक संतुलन में गड़बड़ी आ सकती है। इसलिए यह परंपरा समय के साथ एक मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने का प्रयास हो सकती है।

डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।

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